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________________ नीर में चोर की प्रातिदो सपतीपये पदार्प सत्प पतप इन को मिप्पा सेकासलिये मापाप ! संसार को मिप्यारप मानना पुलियतनामताक: Mपन से परमारमा उपादाम पता तो किसी प्रकार से मी सिय नहीं हो सकता। पिपेसा कामाय कि पर सब प्रसकी माया है। सो पर कपन भी कि नहीं।पोलिस विषय में परमा: उत्पन होती है कि पपा मम मा परिम कहते पा पासा प्रम स्वास्य नहीं हो सकता। फिर पाकर्म पीर मन का प सोपर इप्पापासा प्राप माना गया उपप्पा ..होने से प्रमकी समतादी गाती रोगी / माप में इस बात का भी विचार कर देना चाहिए। इममा मप्रात पस्तु कीनी होती है सो पर कौनसा पथा। जो प्रमको प्राप्त नहीं मा। यदि भाप परफॉगे दिग्स कंपस मनता को अपनी भीसा दिनसातो बम कावेलीसा पाणिसाता Mमो ममता मे प्रप होना तय मापक कपनानुसार * प्रम और जनता दोहोपए / तपाबीमा पारिबहावा. मो अपनी प्रशसा की पा कर पाना पा सायची हो। - परिभादोनों पात प्रम में मानी गायेंगी ! तर मापी निपाता से विचार पर समरिहातो होने से प्रानकीप्रमतारा सकती। कापि नही ।मवएप निकर निकासा किपादान का मोरबारियों ने स्वीकार किया पापा फिसी मीममाप से सिर नहीं हो सकता। एFEEEEEE 3E
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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