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________________ NEXTREMIERRY- UARYA णमोत्यु णं समयस्स भगवो महावीरस्स प्रथम पाठ XLamxxARXXXERIMARIXTEERICERXMAGEXICAXCIRBER (कर्मवाद) श्रात्मा एक स्वतंत्र पदार्थ है जो चेतन सत्ता धारण करने वाला है जिसके धास्तव में वीर्य और उपयोग मुख्य लक्षण हैं। क्योंकि श्रात्मसत्ता की सिद्धि केवल चार वातों पर ही निर्भर है / जैसे किसान, दर्शन, सुख और दुख / पदार्थों के स्वरूप को विशेषतया जानना साथ ही उन पदार्थो के गुण और पर्याय के भेदों को भली प्रकार से अव. गत करना उसी का नाम शान है। पदार्यों के स्वरूप को सामान्यतया अवगत करना उसी को दर्शन कहते हैं। जैसे कि किसी व्यक्ति को नाम मात्र से किसी नगर का सामान्य वोध जो होता है, उसी का नाम दर्शन है / जब फिर वह व्यक्ति उस नगर की वसति, जनसंख्या तथा नगर की प्राकृति तथा व्यापारादि के सम्बन्ध में विशेष परिचय कर लेता है, उसी को शान कहते हैं। सो ये दोनों गुण रात्मा के साथ तदात्म सम्बन्ध रखने वाले हैं। ___ यदि किसी नय के आश्रित होकर गुणों के समूह को ही प्रात्मा कहा जाए तदपि अत्युक्ति नहीं कही जासकती। कारण कि-गुण और गुणी का तदात्म रूप से सम्बन्ध के होरहा है / ये दोनों गुण निश्चय से आत्मतत्व की सिद्धि करने BEAXXXREALEXAXARAYARXKERAL REXSAXRXXXKCXXCEOXXXXHARATAX - - - -
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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