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________________ 1KS " ये सप ९९ प्रकार के देव पर्याय और अपार । दो भेद परने से देवों के मर्थ भैर १९८६प । मो उक्त फयन किये हुए मपं स्था में जब सम्बो . के अनुसार उत्पन होते रहते हैं। यापि प्रसुन प्रकरण जीव मत्व के विषय में इस या सथापि अनादि सारचक में नाना प्रकार की योनियों । में जीव अपने कमी के अनुमार परिभ्रमण कर रहा अत उन स्थानो पा शेयर सभर मात्र से विदा करावा गया है। परच निम समय आर र पमा पो सम्मर द्वारा गिरोध पता है तय प्राची जोम किये हुए होते हैं गनो स्वाध्याय या सप द्वारा क्षय पर ला है। जय सर मरार ये फर्म धधन । आमा विमुश होना तय किर वह गिराण पदपी मान ररता है। यदि ऐकहा गय गिजर आत्मा निर्माण पर प्राम पर लेने पर भी मक्रिय है ता फिर वहा पर फो पा य क्योरता ? म सा मनापान में कहा जाता ६ 1- यद सकिना आमिर गुणा आश्रित है किंतु कपायात्मा का योगात्मा के आश्रित नहीं है इसरिये यह पमी का राध नहीं पर मत्ती । क्यापि स क्यिा थी साधन सामग्री
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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