SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मृषावाद का परित्याग -सर्व प्रकार मे असत्य भापण न करना चाहे मरणातिक कष्ट क्यो न उपस्थित होजाय परतु अपने मुस से कदापि असत्य वचन का प्रयोग न करना । कारण कि असत्य वादी पुरुप अविश्वसनीय बन जाता है अत वह फिर धर्म के भी अयोग्य होता है क्योंकि धर्म का मुरय उद्देश सत्य पदार्थों का वर्णन करना है। उसका उद्देश सत्य के छिपाने का होता है अतएव धर्म के अयोग्य ही कथन किया गया है। मो मत्य के माहात्म्य को समझते हुए अमत्य वचन का प्रयोग कदापि न करना चाहिये। अदत्त का परित्याग-साधुवृत्ति के योग्य जो माझा पदार्थ भी है उनको भी बिना आज्ञा न उठाना जैने कि --- कल्पना करो कि माधु को किसी सण के उठाने की आवश्यक्ता हुई है तो उसको योग्य है कि वह तण भी किमी की विना आज्ञा न उठाये। चौर्य कार्य का जो अतिम परिणाम होता है यह लोगों के मन्मुख ही है। कारागृहादि सर अन्याय करने वालों के लिये ही बने हुए होते हैं फिर उन स्थानों में उनकी जो गति होती है उसमे भी लोग अपरिचित नहीं है । अतएव सिद्ध हुआ कि चौर्य कर्म कनापि न करना चाहिये । सर्व प्रकार से मैयुन कर्म का परित्याग - सर्व प्रकार से मैथुन फर्म का परित्याग करना अर्थात् ब्रह्मचारी पनना, कारण कि शारीरिक या आत्म शाक्ति इस नियम पर ही निर्भर है। परतु जो पुरुष ब्रह्मचर्य के आश्रित नहीं होते....
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy