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________________ ३१ जीव और अजीव । यदि जीव को होता है तन जीव चैतन्यता गुण युक्त मिद्ध हुआ सो चैतन्यता ही ज्ञान का नाम है। सो इस कथन से हमारा पक्ष ही सिद्ध होगया । यदि ऐसा कहा जाय कि जड पदार्थों को ज्ञान होता है तो यह कथन तो प्रत्यक्ष ही विरुद्ध है । यदि ऐसा कहा जाय कि जड पदार्थों से ज्ञान होता है तयतो यह उक्त प्रश्न ही फिर उपस्थित हो जाता है कि किस पदार्थ को ज्ञान उत्पन्न होता है ? अतथ्य सिद्ध हुआ कि आत्मा को ज्ञान युक्त मानयुक्ति युक्त है । सो इमी की अपेक्षा से द्रव्यात्मा जब ज्ञान और दर्शन के उपयोग सयुक्त होजाता है तब उस आत्मा को उपयोगात्मा कहा जाता है । तथा उपयोग की अपेक्षा से ही आत्मा को सर्व व्यापक माना जाता है । क्योकि उपयोग की अपेक्षा से 'Hear 'आत्मा लोपालोक को हस्तामलक्वत् जानता और देखता है । जिस प्रकार सूर्य एक- आकाशवर्ती क्षेत्र में होने पर नियमित रूप से भूमि पर प्रकाश करता हुआ ठहरता है । ठीक उसी प्रकार द्रव्यात्मा एक नियमित क्षेत्र मे रहने पर भी उपयोगात्मा द्वारा सर्व व्यापक होजाता है । J I तथा जिस प्रकार छद्मस्थ मनुष्य जिस क्षेत्रको भली प्रकार देस या उस क्षेत्र (स्थान) का अनुभव कर चका **
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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