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________________ सो यह कपाय और योग के सम्बन्ध मे द्रव्यात्मा का परिणमने जर कपाय और योग के साथ होता है तर आत्मा की कृपयास्मा वा योगात्मा सज्ञा बन जाती है। तथा आत्मा का चेतना लक्षण और उपयोग युक्त है सो इसी न्याय से उपयुक्त होकर शास्त्रकारने एसा प्रतिपादन किया है कि -- जिम समय आत्मा ज्ञान वा दर्शन के उपयोग से उपयुक्त होता है त उसी ममय उस द्रव्यात्मा की उपयोगात्मा सशा होजाती है। , यद्यपि ऐसा कोई भी समय उपस्थित नहीं होता जर कि आत्मा ज्ञान दर्शन के, उपयोग मे शून्य होजाये तथापि सामान्य अवरोथ दान का नाम है और विशेष अवबोध, ज्ञान का नाम है । सो द्रव्यात्मा सदैव-काल ज्ञान दर्शन के उपयोग से युक्त रहने से आत्मा की उपयोगात्मा सहा बनगई है। । ___ मो उपयोग युक्त होने से उपयोगात्मा कहा जाता है तथा उपयोगात्मा के क्थन करने से ज्ञाने दर्शन की सक्रिया "सिद्ध की गई है। क्योंकि बहुत मे आत्मा को मेक्षिावस्था में ज्ञान और दर्शन मे शून्य मानते हैं सो उनका वह कथन हास्यापद है क्योकि जब मोक्षावस्था को जीव प्राप्त हुआ तत्र वह अपनी मूल की भी चेतना यो धैठा ?' !
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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