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________________ ¦ | कर्तापन परमात्मा के समर्पण कर दिया है क्योकि जब किमी ने आत्मा को ईश्वराधीन किया तो दूसरे ने इसको भवितव्यता के आधीन कर दिया है । इतना ही नहीं किंतु अनेक प्रकार ये मन्तव्य अत्मा विषय में सुने जाते हैं जो परस्पर विरोध रखनेवाले है । } अत विचार करना पडता है कि जिन = वादियां ने आत्मा वर्णन किया है वास्तव में उन यादियांने आत्मा का विषय भली भांति अवगत किया ही नहीं। क्योंकि यह विषय युक्ति सहन नहीं करता है । अतएव श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामीने स्याद्वाद के आश्रित होकर उक्त विषय को यथार्थ भाव से वर्णन किया है जिसमें किसी कार में भी शक को स्थान नहीं मिल सकता | $ 3 1 हा, यह बात दूसरी है कि जहा पर हेतु काम न करे यहा हेलाभास से काम लिया जाये मो वह क्दामह कहलायगा नतु न्याय । अत जैन सूनकारों ने सामान्यतया द्रव्य प्रतिपादन किये हैं जैसे कि एक आत्मद्रव्य और दूसरा अनात्मद्रव्य । यद्यपि जीवद्रव्य को आठ गुण युक्त माना गया है जैसे कि मधेश, सर्वदर्गी आत्मि 2 - * 1 अक्षय सुग्न, क्षायिक सम्यक्त्व, निरायु, अमूर्तिक, अगोनीय और अनत शक्तिमान | } *} {
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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