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________________ १६६ भरम म घृत डाला हुआ व्यर्थ जाता है ठीक उमी प्रकार " उक्त स्थानों में धन व्यय दिया हुआ किमी भी कार्य की सिद्धि करने में मामर्थ्यता नहीं रखता। इमरिये प्रत्येक व्यक्ति को योग्य है कि यह व्यर्थ व्यय करने से बचता रहे और साथ ही धर्म, अर्थ, और काम इन तीन वर्ग या यथोचित रीति से पालन करता रहे। क्याति प्रमाण से अधिक सेयन क्येि टु स्थान पर हानि के कारणीभूत बन जाते हैं। । । अताव निष्कर्ष यह निकला कि पानी के अनिरिक्त सर्व, व्या व्यय ही जानना चाहिये। __ साथ ही विवाह आदि प्रिया करते समय जो प्रमाण या नियम से अधिक प्रियाए पी जाती हैं ये मर्य व्यर्थ न्यय मे ही जाननी चाहिये, क्याकि इन सस्कारों के समय तो गण के स्थविर होते हैं ये दश या काल के अनुसार नये • नियमां की ग्चा करते रहते हैं, जो देश और कार के अनुमार के नियम कार्य साधक पनजाते हैं। उनका विचार यह होता है कि इन नियमों के पथ पर धनाढ्य वा निधन सुस पूर्वक गमन कर मागे जिससे किसी को भी बाधा उपस्थित न होगी। जिस प्रकार, राजमार्ग, पर,,सर्व व्यक्ति सुग्य, पूर्वक गमन कर मक्ते हैं और गमन करते रहते
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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