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________________ १५९ F - क्योंकि बहुत मे विद्वानों का कथन है कि विदेशी वत्री बहुत मे अपनि पदार्थों का प्रयोग किया जाता है । में ta tatat an or refer पदार्थों का प्रयोग नहीं किया जाता तथा स्वदेश का व्यय भी न्यूनतर होता है प्रतएव हे मेरे प्यारे पुत्रं । स्वदेशी वेप या स्वदेशी वस्तुओं का देश हित के लिये अवश्यमेव प्रयोग करना चाहिये । 1 क्योंकि विद्वानों का कथन है कि जिम व्यक्ति का स्वदेशी से प्रेम नहीं है, वह व्यक्ति स्वभूमि का शत्रु माना ता है। तथा यदि पवित्र जीवन बनाना चाहते हो वा साधा सीवन व्यतीत करना चाहते हो तथा देश वा धर्मका अभ्युदय आहते हो तो स्वदेशी पदार्थों का सेवन करना चाहिये । - पिताजी । यदि स्वदेशी पदार्थ किमी प्रकार की मजावट न कर सकें तो क्या फिर विदेशी पदार्थों का भी सेवन न करना चाहिये ? 1 पेता -- मेरे परम प्रिय पुन निर्वाह करने में तो कोई पदार्थ बाधाजनक नहीं माना जाता । किन्तु की पूर्ति के लिये स्वदेशी या विदेशी पदार्थ तृष्णा कोई भी अपनी सामर्थ्यता नहीं रसता । तथा जैन शास्त्रों के देखने से निश्चित होता है कि छट्ठे दिखत
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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