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________________ पिता-पुत्र पहाग के ठीक बोध होजाने से फिर तीन - गुरु की प्राप्ति हो जाती है। " पुत्र-पिताजी । वे तीन गुण कौन २.से हैं. १ क्योंकि मैं - उनको सुनना चाहता हू }, , , . पिना- मेरे परम प्रिय सुनु । यदि तू सुनना चाहाना है ठो न सुन । जानने योग्य पदार्थ, त्यागने योग्य , पदार्थ और धारण करने योग्य, इन पदायों का . गधार्थ योष होजाता है। । - पुष - पिताजी ! मैं इन तीनों का स्वरूप विस्तार पूर्वक सुनना चाहावा हूँ। पिता-पुत्र ! मैं तुम को फिर कभी अवकाश मिलने पर इसका विस्तार पूर्वक स्वरूप सुनाउगा परतु अब वो मे सक्षेप पूर्वक ही इनका स्वरूप सुनाना चाहता हूं सो त् ध्यान देकर सुन । जीव और अनीव तथा पुरूप कर्म को इन तीन पायों के स्वरूप को भली भाति जानना चाहिये । क्योंकि अब इना यायं मान होजायगा तब अल्मा सम्यक्त्व से युक्त होता है। अतएव् य तीनों पदार्थ ज्ञेय-जानने योग्य कथन किये गये हैं। परतु पाप आश्व और श्य ये तीनों पदार्थ त्यागने योग्य हैं। कारण कि
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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