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________________ ૨૨૧ विशुरता, द्रोह,भाष, व असूयादि अवगुण क्वापि 1 वर्तान में न लाना चाहिये । किन्तु जिस प्रकार 1 farara aढता जाय उसी प्रकार उनके साथ वर्तना योग्य है ।। - }}, * / 7 T I पुत्र - पिताजी अपने अध्यापकों और महोपाध्यायों के माथ किस प्रकार बर्तना चाहिये ? 1 ¿ I w 2 PM पिता-पुत्र | अपने अध्यापकों और महोपाध्यायों के साथ विनयपूर्वक वर्तना चाहिये और पठनादि क्रियाओं, 14++ *** के विषय में उनकी आज्ञा पालन करनी चाहिये 1 } इतना ही नहीं किन्तु उनको विद्या गुरु वा शिल्पा 5 ★ } चार्य समझते हुए उनकी मन, वचन और काय t ♪ F } तथा धनादि द्वारा उनकी सेना ( पर्युपासना ) F करनी चाहिये । और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिये | 15 { पुरा:- पिताजी " यावन्मान अपने सम्बन्धी हैं ' या भगिनी और भ्राता है उनके साथ किस प्रकार वर्तना चाहिये । せっ # है या है हुआ है उपलब् पिता - प्यारे पुन । यावन्मान स्वकीय सगे सम्बन्धी हैं उनके साथ प्रेमपूर्वक और योग से बर्तना चाहिये । परस्पर +
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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