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________________ १४४ आत्मा पच जाता है तृतीय सत्यवादी आत्मा की. देवता भी सेवा करते हैं और लोक में उनकी प्रतीत (विश्वास) होजाती है । अतएष मदा सत्य सूचना घोलना चाहिये। पुत्र-पितानी । भाइयों के साथ परस्पर बर्ताव कैमा रखना चाहिये । पिता-मेरे प्रिय मुनु ! अपने भाइयों के माथ परस्सर प्रेम पूर्वर यताव रखना चाहिये । परस्सर ईर्षा व असूया कदापि न करना चाहिये । जब कोई सम' कष्ट का उपस्थित होजाय तय परस्पर सहानुभूति द्वारा उम समय पो व्यतीत करना चाहिये । क्यावि यह बात भी प्रकार से मानी हुई है कि जय का का ममय उपस्थित होता है तब परस्पर केश में उप्तन हो जाया करता है किंतु जर प्रेम परस्प रहता है तर यह कष्ट भी कष्ट दायक प्रतीत नई होता। मो इममे सिद्ध हुआ कि भाइयों के सा परस्पर प्रेम से धर्तना चाहिये। पुत्र-पितानी मित्रा के साथ फिम प्रकार वर्तना चाहिये पिना--पुत्र । मित्रता प्राय साधर्मी या मदाचारियो' माय ही होनी चालिये और उसके माथ प्रेमा
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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