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________________ गत, सिद्ध, युद्ध, मुा, परमात्मा, परमेपर इधर, शुद्वात्मा, मश, मर्वदर्गी, केरली "त्यादि अनेर नाम सिद्धारमाआ क सुप्रमिति में आरहे है प्रश्न-मिद्ध भगार या परमात्मादि नामा ये उपो मे दिम फल की प्रानि हासी १ उत्तर - आत्मा की शुद्धि होनाती है क्यापि श्री भगवान का जाप करने मे निर्मल और विशुद्ध भार पन्न हो जाते है और उन भास रेशरण में जमा अपनी रिगुद्धि का रता है प्रश्न -भा नाम रटने म आत्मा अगी विगुद्धि किम प्रचार कर सत्ता है क्यामिः यदि परमात्मा फर प्राता मानानाय र वो रिगुद्धि होता भी युति युक्त मिद्ध हो नायगा सो इश्वर पर प्रदाता तो मारा नाता ही नहा तो नाम करने में विशुद्धि रिम प्रसार मानी जा सकी । उत्तर ---जिम प्रकार एक यम्न मर युक्त लय कोइ व्यक्ति उस वस्त्र को जर पा क्षागदि के द्वारा धोता है तन उसके योग्य पुरुषार्थ के कारण मे यह यस्त्र युद्ध - हो जाता है ठीक उसी प्रकार जीय जन मिद्ध भगयान का अन्त करें +करता है तब उम प्रदेश
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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