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________________ I Found १३९ पासादि । क्याकि इनके सेलने से समय तो व्यतीत अत्यत - हानाता है परंतु लाभ कुछ नहीं होता । I मास - निन पदार्थों के साने, से निर्दयता बढ़ती हो और अनाथ प्राणि अपने प्रिय प्राणों से हाथ धो बैठते हो इस प्रकार के पदार्थ भक्षण न करने चाहिये । " क्योंकि यह बात भली प्रकारसे मानी हुई है कि मासा'हारी को दया कहा है ? ' तथा मासाहार रोगों की वृद्धि भी 3 दे करता है और न यह (मासाहार) मनुष्य का आहार ही है । 1 है "क्या जो पशु मामाहारी हैं और जो पशु घासाहारी f हैं तथा पशु मनुष्य के शरीरावी आकृतियों में विभिन्नता प्रत्यथ दिलाई पडती है । सो मास का आहार कदापि न करना 1 1 ! 7 चाहिये । ¿ ३ शिकार निरपराधी जीनो को मारते फिरते रहना क्या योग्यता का लक्षण है ? कदापि नहीं । इसलिये शिकार न सेलना' चाहिये । ' इतना ही नहीं हासी या कौतुहल के बीभूत होकर भी किसी जीव के प्राण न छीनने चाहिये । 1 3 पुत्र - रिवाजी | जो अपने वस्त्रो या केशों में जू आदि जीव 1 " पड जाते हैं तो क्या उनको भी न मारा चाहिये 2 of be ― पिता पुत्र H । उनको भी न मारना चाहिये । ५ + 71
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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