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________________ १९ जैसे कि धन, पशुवर्ग, पाशानि मो यदि विचार पूर्व दसा नाय वो वास्तव में तीनों की स्थगा नहीं है । अत ममय कर भी पर्थ तिद्ध हुआ । इस प्रकार की शुभ भावनाओं द्वारा जब आमा निमगल मान व आश्रित होनायगा तब इस आपाप उत्साद और पडित पुरुषार्थ उन पर पहुच जायेगा जिसके कारण मे फिर यह आमा आमापी भाव का शीघ्र ही प्राप्त हो जायगा । जब आत्मापी नगा तय उस आला के आम विकास का प्रभाव लगेगा। दा ५ आत्म विकास निम प्रकार पायों से दूर होतान पर सूर्य का free erreगता है तथा निम प्रकार सूर्य क उदय होनाने पर सूर्यविरामी कमल विकसित हा जाते ठीक उसी प्रकार माप अपगम होने पर आत्मा की अनित्य चियाँ विकसित होने लग जाती है । जब वन आत्म प्रदेशों मे यथा प्रथवा जाते है तब आत्मा के अगुण प्रस्ट हो जाते है जिसमे फिर उमी आत्मा यो यश या मवदर्गी कहा जाता है । यदि ऐसा कहा जाय कि सयथा यम बिम प्रकार आत्मा स पृथक हो मत है ? तो इसके उत्तर से कहा जा
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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