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________________ १२३ तथा ऐसा कौनसा अकार्य है जो कोधी नहीं कर बैठता ! सो आत्म विचार करने के लिये प्रथम शाति धारण करनी चाहिये 1 शास्त्रों में लिसा है कि " कोहो पीइप्पणासेइ" कोव प्रीति का नाश कर देता है । सो जिन २ पदार्थों पर प्रीति होती है, क्रोधी उन पदार्थों का नाश कर देता है 1 5 सो विचारशील व्यक्तियों को योग्य है कि वे शाति द्वारा क्रोध को शात करें। जब क्रोध शांत होगया तब फिर आत्मा निवेक ओर विचार से ठीक सत्ता है । प्रकार के काम ले जिस प्रकार क्रोध प्रत्येक पदार्थ के बिगाड़ने में सामर्थ्य रमता है ठीक प्रत्येक कार्य की सफलता करने में सामर्थ्य रखती है । नाश करने में या उसी प्रकार क्षमा कहा गया है कि शत्रुओं के जीतने में क्षमारूप एव महान् प्राकार [ गढ या कोट ] है जिसमें कोई शत्रु प्रविष्ठ ही नहीं हो सत्ता । अतएव आत्मानुप्रेक्षा के लिये प्रति अवश्य धारण करलेना चाहिये । ४ निर्ममत्वभाव - यावतकाल पर्यंत आत्मा निर्ममत्व भाव के आश्रित नहीं होता तावत्काल पर्यंत वह मोटलीग गर्न
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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