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________________ ११० २७ तीर्थकरनामस्म किसे पहते हैं ? निम कर्म के उदय से तीर्थकरपद की प्राप्ति हो । २८ प्रमनामकर्म सेि पहते हैं ? जिस कर्म के उदय से द्वीन्द्रियादिनसमाय की प्राप्ति हो। २९ यादरनामम पिसे कहते हैं ? जिस कर्म के उदय मे जीव फो घादर (स्थूल) काय की प्राप्ति हो। ३० पर्यातनामकर्म विसे पहते हैं ? जिस कम से उदय से जीव अपगी २ पयाप्तियाँ से युक्त हो अर्थात यावन्मान सिमे पर्याप्तियाँ पडती हा तापमान पर्याप्तियों से मुक्त हो जाये। ३१ प्रत्येक मर्म क्मेि कहते हैं ? निस कम के उदयसे एक शरीर का एक जीन स्वामी हो अर्थात एक गरीर म एक ही आत्मा निवास करनेमाले होवे । यद्यपि उमकी नेश्नाय अनेक आत्माए और भी उस शरीर में रह मसी है परतु मुरयतामें एक ही आत्मा उस शरीर में रहे ।। ३२ स्थिरनामकर्म किसे कहते हैं ? जिस क्म फे उदय से दात, हड़ी वगैरह शरीर के अवयव 4 (अपने • ठिगाने ) हो।
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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