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________________ उत्तर --जीप द्रव्य तो पट व्या म येयर एक ही भेद नाग है परतु मुग्यतया इसके दो भेट हैं जैसे कि बद्ध और मुर प्रश्न ---गुक्त जीय फे कितने भेट है? उत्तर --मुत्र आत्मा भेदों स रहित है पातु म्यपदार य की अपेक्षा स ( प्रकार के जीय मिद्भगति प्रान करते हैं प्रश्न- १५ भेद कोन २ मे " उत्तर --एकातना से प्रवण कीनिये १ नित्य सिध्दा-निगममय भातीयर देव अपन धमापन व्दारा माधु, माची, भाया और पारिका रूर चाग नीर्थों की स्थापना करते हम नीयम जो जात्मा ज्ञानाचरणीय, रशनावरणीय, बन्नाय, मोहनीय, आयुष्यकम, IITम, ग नाम जार अत राय इन आठों वर्मा को सय कर निवाण पर प्राप्त करते हैं ग्न जीया यो ताथमिट कहते हैं • अतित्थ सिटा--नवतय श्री भगवान ने अपने धमापदश व्दारा तीथ स्थापन नहा पिया म ममा कोई आत्मा मोक्ष पद प्राप्त कर रेघ २५ उमको अतीय मित काम हैं जैसे कि भगवान अपभन्न प्रभु की मरदवा माता ने निया पद प्राप्त किया था
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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