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________________ १०१ पवित्र बनाता है क्योंकि तत्व का वास्तवमें यही मुरय लक्षण है कि वह स्वतनता पूर्वक अपना कार्य करता रहता है। प्रश्न- क्या मभी आत्माए ससार में परिभ्रमण करनेवाली ,पुण्योपार्जन करती रहती हैं ? उत्तर:-हा, ससारी सभी आत्माए समय २ उक्त फर्म का सचय करती रहती हैं परतु विशेषता इतनी ही है कि न्यूनाधिक पुण्य प्रकृतियों का प्रत्येक आत्माए समय • वध करती रहती हैं। मदन:-क्या किसी नयने पुण्य को धर्म भी माना है ? उत्तर---हा, व्यवहार नय के मत से पुण्य क्रियाओं को धर्म भी माना गया है। प्रश्न -क्या पुण्य रूप क्रियाए आत्म रूप धर्म नहीं है ? उत्तर -आत्मरूप धर्म पुण्य और पाप दोनो से रहित होता है। पदन ---हम तो पुण्यरूप क्रियाओं को ही आत्मरूप धर्म समझते हैं ? उत्तर-यह क्थन आपका विचार पूर्वक नहीं है क्योंकि - यदि किसी मूर्स व्यक्ति को विद्वानों वा जटलमेनों
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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