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________________ ९६ 2 ५ रस - तिक १ टुर २ क्पाय रस ३ अचम्बिल ( सट्टा ) ४ मधुर ५ गन्ध - दुध और सुगघ । स्पर्श कक्दा १ सकोमर २ रु ३ स्निग्ध ४ लघु ५ गुरु ६ उष्ण ७ गीत ८ परिमंडल स्थान का भाजन हो वृत्त संस्थान प्रतिषय हो तो परिमंडल मस्थान म २० बोल पडते हैं। ३ आठ यश में जैसे रि-पाच वण १ पाच रम २ दो गद्य स्पर्श इसी प्रकार २० बोल वृत्त संस्थान म २० २० गोल चतुरस्र संस्थान मे २० पोल आयत संस्थान में सर्व पाच संस्थाना में २० पोल होगए । १ कृष्ण वर्ण के भागन मे २० घोल संस्थान व गघ ८ स्पश --- P -५ रस ५ : " सो इसी प्रकार नीलवर्ण, पीतवण, रक्तवर्ण, और श्वेतरण में भी पूर्वोक्त विधि से २०-२० बोल पडते हैं सो सर्व सरया एन परो से १०० बोल होजाते हैं । सो जिस प्रकार से पाच वणों में १०० भेद पडते हैं उसी प्रकार पाच रसों के भी १०० भेद होजाते हैं तथा ५ स्थानों के भी विधि से १०० भेद बन जाते हैं परंतु मुगध मे
SR No.010865
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Swarup Library
Publication Year
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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