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________________ पञ्चम अध्याय ॥ ७५१ जिस काम को विचारता है वह सब सिद्ध होगा, अब तेरे दुःख का नाश हो गया है परन्तु तुझे देशान्तर ( दूसरे देश ) में जाने से बन का लाभ होगा और कुशल क्षेम से आना होगा, इस बात का यह पुरावा है कि - तू स्वप्न में पहाड़ पर चढना तथा मकान आदि को देखेगा, अथवा तेरे पैर पर पचफोड़े का चिह्न ( निशान ) है । ४३२ - हे पूछने वाले । अब तेरे सब दुःख समाप्त हुए तथा तुझे कल्याण प्राप्त हुआ - तुझे ठिकाने की चिन्ता है तथा तू किसी की मुलाकत को चाहता है सो जो कुछ काम तू ने विचारा है वह सब होगा, देशान्तर ( दूसरे देश ) में जाने से धन की प्राप्ति होगी तथा वहॉ से कुशल क्षेम से तू आवेगा । ४३३ - हे पूछने वाले ! जब तेरे पास पहिले धन था तब तो मित्र पुत्र और भाई आदि सब लोग तेरा हुक्म मानते थे, परन्तु खोटे कर्म के प्रभाव से अब वह सब धन नष्ट हो गया है, खैर ! तू चिन्ता मत कर, फिर तेरे पास धन होगा, मन खुश होगा तथा मन में विचारे हुए सब काम सिद्ध होंगे । ४३४ – हे पूछने वाले ! जिस का तू मरना विचारता है वह अभी नहीं होगा ( वह अभी नहीं मरेगा) और तू ने जो यह विचार किया है कि - यह मेरा काम कब होगा, सो वह तेरा काम कुछ दिनों के बाद होगा । ! के ४४१ - हे पूछने वाले ! तेरे भाई का नाश हुआ है तथा तेरे क्लेश, पीडा और कष्ट बहुत दिन बीत गये हैं, अब तेरे ग्रह की पीड़ा केवल पाँच पक्ष वा पाच दिन की है, जिस काम को तू विचारता है उस में तुझे फायदा नहीं है, इस लिये दूसरे काम को विचार, उस में तुझे कुछ फल मिलेगा । ४४२-हे पूछने वाले ! जिस काम का तू प्रारम्भ करता है वह काम यज्ञ करने पर भी सिद्ध होता हुआ नहीं दीखता है, अर्थात् इस शकुन से इस काम का सिद्ध होना प्रतीत नहीं होता है इस लिये तू दूसरा काम कर । ४४३-हे पूछने वाले | जिस काम का तू प्रारम्भ करता है वह काम सिद्ध नहीं होगा, तू पराये वास्ते (दूसरे के लिये ) जो अपने प्राण देता है वह सब तेरा उपाय व्यर्थ है इस लिये तू दूसरी बात का विचार कर, उस में सिद्धि होगी । ४४४-हे पूछने वाले ! जिस काम का तू वारवार विचार करता है वह तुझे शीघ्र ही प्राप्त होगा अर्थात् पुत्र का लाभ, ठिकाने का लाभ, गई हुई वस्तु का लाभ तथा धन का लाभ, ये सब कार्य बहुत शीघ्र होंगे || प्रदेशगमनादिविषयक शकुन विचार ॥ १- यदि ग्राम को जाते समय कुमारी कन्या, सधवा ( पतिवाली ) स्त्री, गाय, भरा
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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