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________________ पञ्चम अध्याय ॥" ৩৪৩ २३३-हे पूछने वाले! तेरे मन में अचानक (एकाएक ) काम उत्पन्न हो गया है, तू दूसरे के काम के लिये चिन्ता करता है, तेरे मन में विलक्षण तथा कठिन चिन्ता है, तू ने अनर्थ करना विचारा है, इस लिये कार्य की चिन्ता को छोड़ कर तू दूसरा काम कर तथा गोत्रदेवी की आराधना कर, उस से तेरा भला होगा, इस बात की सत्यता का प्रमाण यह है कि-तेरे घर में कलह है, अथवा त बाहर फिरता है ऐसा देखेगा, अथवा तुझे खम्म में देवतों का दर्शन होगा। २३४-हे पूछने वाले ! तेरे काम बहुत है, तुझे धन का लाभ होगा, तू कुटुम्ब की चिन्ता में वार २ मुर्शाता है, तुझे ठिकाने और जमीन जगह की भी चिन्ता है, तेरे मन म पाप नहीं है, इस लिये जल्दी तेरी चिन्ता मिटेगी, तू स्वप्न में गाय को, भैस को तथा जल में तैरने को देखेगा, तेरे दुःख का अन्त आ गया, तेरी बुद्धि अच्छी है इस लिये शुद्ध भक्ति से तू कुलदेवता का ध्यान कर । __ २४१-हे पूछने वाले ! तुझे विवाहसम्बन्धी चिन्ता है तथा तू कहीं लाभ के लिये जाना चाहता है, तेरा विचारा हुआ कार्य जल्दी सिद्ध होगा तथा तेरे पद की वृद्धि होगी, इस बात का यह पुरविा है कि-मैथुन के लिये तू ने बात की है। - २४२-हे पूछने वाले ! तुझे बहुत दिनों से परदेश में गये हुए मनुष्य की चिन्ता है, तू उस को बुलाना चाहता है तथा तू ने जो काम विचारा है वह अच्छा है, परन्तु भावी बलवान् है इस लिये यह बात इस समय सिद्ध होती नही मालूम देती है। " २४३-हे पूछने वाले । तेरा रोग और दुःख मिट गया, तेरे सुख के दिन आ गये, तुझे मनोवाञ्छित ( मनचाहा ) फल मिलेगा, तेरे सब उपद्रव मिट गये तथा इस समय जाने से तुझे लाभ होगा। __ २४४-हे पूछने वाले ! तेरे चित्त में जो चिन्ता है वह सब मिट जावेगी, कल्याण होगा तथा तेरा सब काम सिद्ध होगा, इस बात का पुरावा यह है कि-तेरे गुप्त अङ्ग पर तिल है। । । । ३११-हे पूछने वाले ! तू इस बात को विचारता है कि मै देशान्तर (दूसरे देश) को जाऊँ मुझे ठिकाना मिलेगा वा नहीं, सो तू कुलदेवी को वा गुरुदेव को याद कर, तेरे सब विघ्न मिट जावेंगे तथा तुझे अच्छा लाभ होगा और कार्य में सिद्धि होगी. इस बात की सत्यता में यह प्रमाण है कि-तू खप्न में पहाड़ वा किसी ऊँचे स्थल को देखेगा। ____३१२-हे पूछने वाले ! तेरे मनोरथ पूर्ण होवेंगे, तेरे लिये धन का लाभ दीखता है, तेरे कुटुम्ब की वृद्धि तथा शरीर में सुख धीरे २ होगा, देवतों की तथा ग्रहों की जो पर्व की पीड़ा है उस की शान्ति के लिये देवता की आराधना कर, ऐसा करने से तू जिस
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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