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________________ ७३२ जैनसम्प्रवानशिक्षा || ८-यदि मभ करते समय सूर्य स्वर में अभिः मायु अथवा माकाश तत्त्म चक्ता हो वो जान लेना चाहिये कि रोगी के शेरीर में एक ही रोग है परन्तु यदि प्रभ करते समय सूर्य खर में पृथिनी तत्त्व वा जल तत्त्व छता हो तो मान खेना चाहिये कि रोगी के शरीर में कई मिश्रित ( मिले हुए) रोग हैं। ९ - स्मरण रखना चाहिये कि वायु और पिच का स्वामी सूर्य है, कफ का खामी त्र है तथा समिपात का स्वामी सुखमना है I १० यदि कोई पुरुष बसे हुए स्वर की तरफ से या कर उसी ( चलते हुए ) तर की तरफ खड़ा हो कर वा बैठ कर प्रभ करे तो कह देना चाहिये कि तुम्हारा काम भ्रमम सिद्धं होगा । ११- मंदि काई पुरुष स्वासी स्वर की तरफ से आकर उसी (स्वाती) खर की तरफ खड़ा हो कर वा बैठ कर प्रभ करे तो कह देना चाहिये कि तुम्हारा कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होगा । १२ – यदि कोई पुरुष खाली स्वर की तरफ से भा कर चखते स्वर की तरफ सड़ा हो कर ना बैठ कर मन करे तो कह देना चाहिये कि तुम्हारा कार्य निस्सन्देह सिद्ध होगा । ११- यदि कोई पुरुष चमते हुए खर की तरफ से आ कर स्वामी स्वर की तरफ खड़ा हो कर या बैठ कर मन करे तो कह देना चाहिये कि तुम्हारा कार्य सिद्ध नहीं होगा । १४- यदि गुरुवार को वायु तत्व, घनिवार को भाकाल तस्य, बुधवार को पृथिवी तत्व सोमवार को भस तत्त्व सभा शुक्रवार को यमितत्त्व मातः काल में भछे सो बान ना चाहिये कि घरीर में जो कोई पहिले का रोग है वह अवश्य मिट जावेगा ॥ १६ शरीर में उदान प्राण व्याप सम्मान और पान नामक पाँचमा है, मेधा विपरीत काम पाण ऊपरी कुपथ्य तय विपरीत व्यवहार से कुपित होकर अनेक रोगों को उत्पन्न करते है (जिनका दर्षन पोधे ममान में कर चुके है शरीर में पाचक, भाजक रक्षक आमेषक और सामक गायक याच पिच है, वे पिस चरपरे टीके कई मिर्च भावि धर्म चीजों के सेक खूप काम कर मैथुन आणि विपरीत व्यवहार से कुपित हो कर फीस प्रकार के रोकों को पत्र करते हैं, एवं करीर में भगम्यम से रसम सेहन और पण नामक पाँच कफ है, वे मीठे बहुत चित्र बासेन के सम भाले के खान पान से दिन में सरेमा परिभ्रम न करता ता सेय और मैयों पर बैठे रहना नाविपरीत महार से कुपित होकर बीस प्रकार के रोगों को उत्तर करते हैं, परन्तु जब विरूद्ध बार और बिहार से ये दोनों क्षेष कुपित हो जाते है वन सचिव रोग होकर मामियों की मृत्यु से बहु २- पूर्ण सफल ४- बृहस्पतिवार ॥ है 1-ना सम्देह के मा
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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