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________________ ७२० चैनसम्मवायशिया ।। ५-चीवन और सिर कार्यों को चन्द्र सर में करना चाहिये, वैसे-नये मन्दिर मनवाना, मन्दिर की मी का खदाना, मूर्वि की प्रतिष्ठा करना, मूग नायक की मति ने सापित करना, मन्दिर पर दण्ड समा कसम का चढ़ाना, उपामय (उपासरा । पसाला, दानशाम, विपाष्ठामा पुस्तकाम्म, पर ( मचम), होट, माण, गा मौर भेट का पनवाना, सच की माला र पहिराना, दान देना, दीक्षा देना, यमोपलीस देना, नगर में प्रवेश करना, नये मकान में प्रवेश करना, कपड़ो मौर माम्पों ( गहनों) फा कराना भयवा मोड मेना, नमे गहने मौर कपड़े का पहरना, अधिकार मन, मोपपि का बनाना, खेती करना, बाग बगीचे का गाना, राजा पादि बरे पुरुषों से मित्रता करना, राज्यसिंहासन पर पेठना वमा योगाभ्यास करना इस्पादि, ताप यह है कि ये सय कार्य पन्द्र सर में करने चाहिये क्योंकि पन्द्र खर में किये हुए उक भर्य फस्पापकारी होते हैं। ६-र मौर पर भर्यों को सूर्य स्तर में करना चाहिये, मेसे-विषा के सीसने म प्रारम्म करना, ध्यान सापना, मम तमा देव की भारापना फरना, राणा या हाकिम को भी देना, पकाळत वा मुस्तस्पारी छेना, वैरी से मुकायम करना, सर्प रे का वमा भूत का उतारना, रोगी को दवा देना, विम का शान्त करना, करी मीभ उपाय करना, हाथी, घोड़ा तमा सवारी (पग्मी रप भादि) सेना, मोबन करना, मान करना, सी को पासवान देना, मई वहीं से मिलना, पापार करना, राजा खम् से मनाई करने को वाना, जहाज मा ममि नोट को दर्याव में बसाना, मेरी मकान में पैर रसना, नदी भादि के बस में वैरमा वमा किसी को रुपये उपर देना मासेमा इत्यादि, तात्पर्य यह है कि ये सब कार्य पूर्य खर में करने चाहिने, पाकि सूर्य स्वर में किये हुए उस कार्य सफल होते हैं। -मिस समय पम्सा २ एक स्वर रुक कर दूसरा सर बदल्ने को होगा रे मार मप चन्द्र खर बदल कर सूर्य सर होने को होता है भगवा सूर्य सर बदल कर पन्द्र सर होने को होता है उस समय पाप सात मिनट तक दोनों सर पम्ने उगते हैं उसी का पुसमना सर करते हैं, इस (सुलमना) स्वर में कोई काम नहीं करना पारस, क्योंकि इस सर में किसी काम करने से बह निष्फल होता है तथा उस से भामा उत्पन होता है। वा है। 1-स में भी बसवत्त भार पूपिणी वत्त ऐमा भति भो ५-8 पर्षात् एप्रन । २-इस में भी वियवत्व भौर पर पालम ऐन भविभेड
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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