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________________ ७०६ बैनसम्प्रदायशिक्षा। मागे पत कर हम ज्योतिष की कुछ मावश्यक बातों को मिलेंगे उन में सूर्य प्र उदय और मख उमा छम को स्पष्ट जानने की रीति, ये दो विषय मुख्यतया ग्रासों के नाम के लिय रिले जायेंगे, क्योकि गृहल ोग पुत्रादि के बन्मसमय में साभारम (कुछ परे हुए) ज्योतिषियों के द्वारा जन्मसमय को मसला कर मन्मपुरती बसाठे हैं, इस के पीछे भन्य देश के या उसी देश के किसी विद्वान् ज्योतिमी से उन्मपी बनवाते हैं, इस दशा में प्राय यह देसा बाता है कि बहुत से लोगों की बन्मपत्री म शुमाशुम फउ नहीं मिलता है सब के गेग मन्मपत्री के पनाने वाले विद्वान् को या ज्योति विधा को दोष देते हैं भर्यात् इस पिया को मसस्य (मठा) मनात , परन्तु विपार कर देसा बावे तो इस विषय में न तो मन्मपत्र के बनाने वाले द्विान का दोप है और न ज्योति विया का ही दोष है किन्तु चोप केवल चन्मसमय में ठीक उम न खेन का दे, सारार्य यह है कि-यदि मन्मसमय में ठीक रीति से समम्पि चाये समा उसी के अनुसार सन्मपत्री बनाई आये तो उस का शुभाशुभ फल मास मिक सकता है. इस में कोई भी सन्देह नहीं है, परन्तु शोक का निपय तो यह है कि नाममात्र के योतिपी गेग र यनाने की क्रिया को भी तो ठीक रीति से नहीं बनत हैं फिर उन की बनाई हुई अन्मकुणा (टेवे ) से शुभाशुम फस से विदित हो सकता है, इस सिमे हम डम के पनाने की क्रिया का वर्णन भवि मर रीति से करे । सोलह तिथियों के नाम ॥ सम्या संस्कृत नाम हिन्दी नाम संस्मा संस्कृत नाम हिन्दी नाम मतिपम् ९ नवमी नौमी द्वितीया य १० दशमी वटी तृतीया एकादशी भ्पारस चतुपी मावती बारस प्रमोदष्टी ६ पष्ठी छठ ११ पर्दधी चौदस - सप्तमी सातम १५ पर्णिमा गा पूर्ण- पूनम का प्रममासी पडिया वाम १२ पचमी पापम तेरस मासी ८ भरमी माठम १९ भमानासा अमावस सूचना-कृष्ण पक्ष (बदि) में पन्द्री विपि अमावास्या प्रगती है मा शुक्ल पक्ष (मुवि ) में पन्द्रही तिथि पूर्णिमा वा पूर्णमासी लाती है।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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