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________________ पञ्चम अध्याय ॥ ६८९ नाछला ८३ संख्या नाम न्यात संख्या नाम न्यात संख्या नाम न्यात संख्या नाम न्यात २५ हरसौरा ४२ सारेड़वाल ५९ खंडवरत ७६ जनौरा २६ दसौरा ४३ • मॉडलिया ६० नरसिया ७७ पहासया ४४ अडालिया ६१ भवनगेह ७८ चकौड २८ टंटारे ४५ वरिन्द्र ६२ करवस्तन ___ ७९ वहड़ा २९ हरद ४६ माया ६३ आनदे ८० घेवल ३० जालौरा ४७ अष्टवार ६४ नागौरी ८१ पवारछिया ३१ श्रीगुरु ४८ चतरथ ६५ टकचाल ८२ बागरौरा ३२ नौटिया ४९ पञ्चम ६६ सरडिया तरौड़ा ३३ चौरडिया ५० वपछवार ६७ कमाइया ८४ गीदोडिया ३४ भूगड़वाल ५१ हाकरिया ६८ पौसरा । ८५ पितादी ३५ धाकड़ ५२ कदोइया ६९ भाकरिया ८६ बघेरवाल ३६ वौगारा ५३ सौनया ७० वदवइया । ८७ बूढेला ३७ गौगवार ५४ राजिया ७१ नेमा ८८ कटनेरा ३८ लाड ५५ वडेला ७२ अस्तकी ८९ सिँगार ३९ अवकथवाल ५६ मटिया ७३ कारेगराया ९० नरसिंघपुरा ४० विदियादी ५७ सेतवार ७४ नराया ९१ महता ब्रह्माका ५८ चक्कचपा ७५ मौड़मॉडलिया एतद्देशीय समस्त वैश्य जाति की पूर्वकालीन सहानुभूति का दिग्दर्शन ॥ विद्वानों को विदित हो होगा कि-पूर्व काल में इस आर्यावर्त देश में प्रत्येक नगर और प्रत्येक ग्राम में जातीय पञ्चायतें तथा ग्रामवासियों के शासन और पालन आदि विचार सम्बंधी उन के प्रतिनिधियो की व्यवस्थापक सभायें थीं, जिन के सत्प्रवन्ध (अच्छे इन्तिजाम ) से किसी का कोई भी अनुचित वर्ताव नहीं हो सकता था, इसी कारण उस समय यह आर्यावर्त सर्वथा आनन्द मङ्गल के शिखर पर पहुंचा हुआ था। प्रसगवशात् यहा पर एक ऐतिहासिक वृत्तान्त का कथन करना आवश्यक समझ कर पाठको की सेवा में उपस्थित किया जाता है,आशा है कि उस का अवलोकन कर प्राचीन प्रया से विज्ञ होकर पाठकगण अपने हृदयस्थल में पूर्वकालीन सद्विचारो और सदतीवो को स्थान देंगे, देखिये-पद्मावती नगरी में एक धनाढ्य पोरवाल ने पुत्रजन्ममहोत्सव में अपने अनेक मित्रों से सम्मति ले कर एक वैश्यमहासभा को स्थापित करने का विचार
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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