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________________ अम्देली सौदा मोगर ६८० मैनसम्प्रदायश्चिता ॥ सल्या गोत्र पंच गांव ७३ महकार्या , सौप , मईकर , सिसम्म ७४ मूसावस्या, कुर्वधी मसमरपा, - सौनत ७५ मौम्सरा , मौमसर , सिमराम ७६ माँगड़ा , खीमर औरक ७७ गहरापा, मोरठा , औहट , सपिया । ७८ क्षेत्रपाल्मा , दुमार सेत्रपास्मो, हेमा ७९ रामभव , सासग राषमदरा, सरसती ८० अवास्या , कछाया मुंगाउ ॥ चमवाय ८१ बग्वाम्या, कछाना बल्वामी , गमनाम ८२ वेवाल्या , ठीमर , बनगोड़ा , भौरल ८३ छठीवान, सौग , पटवारा, भीदेवी ८१ निरपास्मा, सोरटा , निपती 1, भमाणी यह पधम अध्याय का सेरेम्बाउ जातिवर्यन नामक वीसरा प्रकरण समाप्त हुमा । चौथा प्रकरण माहेश्वरी यशोत्पचि वर्णन ॥ माहेश्वरी पशोत्पत्ति का सक्षिप्त इतिहास ॥ संग नगर में सूर्यपंधी चौहान नाति का रामा सहगरसेन राग्य परसा था, उस फे कोई पुत्र नहीं था इस सिये रामा के सहित सम्पूर्ण रामपानी पिन्ता में निमम था किसी समय राजा ने प्रापों को मति भावर के साप भपने यहाँ मुगया उषा मन्त्र प्रीति के साथ उन को बहुत सा ब्रम्प मवान किया, तब प्राममों ने प्रसग होफर राम को पर दिया कि-"हेरानन् । सेरा मनोवांछित सिद्ध होगा" राजा मोठा "हे महारान ! मुझे तो जल एक पुत्र की पाम्म हे" मग मामयों ने कहा"हे रामन् ! तू निवशफिकी सेगर ऐसा करने से सिप बी के पर भोर स छोगों के पाठीर्वाद से सरे पहा पुद्धिमान् भौर पम्नान पुत्र रोगा, परन्तु वा सोग 1-परमादेवी भागो गति मनिराम पाप न भाये पाया 10 भानुशार म ने पास भाभमाया मारेभषरापापतिसम्म (ो . साप्रपा )गवान प्रविवार सेसपेरेपपपुरिमाम् सरोगे (मका उससोचि मादम बाद प्रशासन इस सप कर दिया
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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