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________________ ६५१ मैनसम्मवामशिक्षा ॥ कि-"फिर भी कोई होसी" इस मकार कह र उक सौप को भी मिस लिग, बस तन ही से ओसवारों के ११११ गोत्र को माये हैं। सूचना-हमारी समझ में ऊपर मिसा हुमा न केवल पन्तयारप प्रवीत होता है, भता इस विपय में हम सो पाठकगणों से यही कर सकते हैं कि-मोसमाये के १५५१ गोत्र करने की केवल एक प्रभामान चल पड़ी, क्योंकि वे सन मूठ गोत्र नहीं है किन्तु एक एक मूस गोम में से पीछे से सासाये तमा मविश्वासामें निकली है,ये सब ही मिला कर ११११ संस्सा समझनी चाहिये, उही को शासा, सांप, नस और मोम्साण इत्यादि नामों से भी कर सकते हैं, मवः मिन वास्तामों के प्ररित होने का हाल मिला हे नन को हम मागे "शाखा गोत्र" इस नाम से मिलेंगे, क्योकि सा सो व्यापार आदि मनेक प्ररणों से होसी गई है मर्मात् राख का काम करने से, किसी नगर से उठ कर भन्यन मा फर यसने से, म्मापार पन्मा करने से भौर मेकित प्रया भादि भनेक कारणों से बहुत सी साप हुई है, उन के कुछ उदाहरण भी गाँ सिसते-देलिये ! राम के सजाने का काम करने से लोगों को सब लोग समांची पाने सो तमा उन की भौठाववाले लोग भी समापी फागमे, राम कोठार काम करने से लोगों को सब छोग गरी करने मगे मोर उन की ओगावपाले ठोग मी कोठारी करगमे, राम में ठिसने से काम करने से कोपरों को फगेभी मारपार में सब सोग 'कानूंगा कहने सगे (वे मम 'बगा' कहलाते हैं) छाजेड़ों को बीकानेर में निरसी का सितारो समा मेगाणियों को मी निरसी समा मुसरफ का खिताब मिन्म बस ने उक्त नामों से ही पुकारे जाते हैं, इसी प्रकार पाठियों में से हरसा बी में योमदवाने सोग हरसावत प्राये, ऐसे ही योपरों के गोत्रपाले सोग पीसनेर में मुभीम और साह भी कहलाते हैं, रासेमा गोषवाले कुछ पर पूगस'को छोड़ कर भन्यत्र या १- प्रवीसरी भारत में इस बात प्रमाणे प्रभार से समस्या रिला अस्पताल से म पेत्रोम १ सौ पचाप तथा प्रविपासा, इसलिये एप मोसमात पासपनों को सचिव है मपनी पाति समय में मास सम्म प्रभान परे सवा हम कैग पाते म पमे । भूब पेन और रस में साथ मारपये हा पमें मार से रत र मिस कर हमारे नियमारिप बीसौम्यम्म पुसमी पाम (नामनेर) में भेज देने वा मोर पात बब परिवरित रोमेस्वर रसे भी स्पा पर मेरते ररे, सिरप व मेव पमा पर पोरस प्रामामा और मप्रामालिना मावि र प भी पास पर्याप गरिन मात् तमा, प्राचीन रवा भाय के पास को समापनास पानि को मिलेगा भेवरेन्द्र पापे परत पाल में पस प्रभाम मास मय मा पहिले हमारी इस प्रपन पर मानर परिसामोपपास मषय स विषय में सामा करेंगे ये मोदी समय में बोसपायर सम्मम योगों का विश्व पूर्ण रोपि से मार से सीमा ।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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