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________________ ६१० जेनसम्प्रदायशिक्षा । को प्राप्त हुमा उस समय सगर का नाना भीमसिंह (बो कि अपुत्र पा) मृत्यु को प्रात हो गया तथा मरने के समय यह सगर को अपने पाट पर सापित कर देने का परंग कर गया, बस इसी रिये सगर ११० प्रामों के सहित देवरवाड़े का रामा हुआ मोर उसे दिन से वह राना कहलाने लगा, उस का श्रेष्ठ तपस्तेन चारों ओर फैछ गमा, उस समय चिोड़ के राना रतन सी पर माम्नपति मुहम्मद पादशाह की फौब पढ़ पाई वन रामा रखन सी ने सगर को शुरवीर बान कर उस से अपनी सहायता करने के रिसेपम भेजा, उन की समर को पाते ही सगर चतुरङ्गिणी (एभी, पोडे, रम और पैदमे से युफ) सेना को समगा फर राना रसनसी की सहायता में पहुंच गया और मुहम्मद मार शाह से युद्ध किया, बादशाह उस के मागे न सर सफा भोट हार कर माग गया, तर माय देव को सगर ने अपने कजे में कर लिया उमा भान मोर दुहाई को फेर र माने का मालिक हो गया, कुछ समय के बाद गुजरात के मालिक माहिलीम भाव मा मद बादशाह ने राना सगर से यह प्रला भेषा कि-"तू मुच को सलामी दे मौर हमारी नौकरी को मजूर कर नहीं तो माम्य देव को मैं सुप्त से छीन रंगा" सगर ने इस बात को मीकार नहीं किया, इस का परिणाम यह हुमा कि-सगर भौर गाववाह में परस्पर घोर युद्ध हुभा, आखिरकार बादशाह हार कर माग गया और सगर ने सब गुजरात अपने मापीन फर ठिया मर्मात् राना सगर मालव और गुबरात वेश का मालिक हो गया, कुछ समय के बाद पुनः किसी कारण से गोरी नाववाह भौर राना रतन सी में परस्सर में पिरोप उत्पन हो गया भौर बादशाह चित्तौर पर पर आया, उस समय राम जी शूरवीर सगर को मुछामा और सगर ने भार उन दोनों का भापस में मेक करा दिया वमा बादशाह से पण लेकर उस ने मारुप और गुजरात देश को पुन पावशाह को मापिस दे दिया, उस समय राना जी ने सगर की इस उद्धिमधा को देस कर उसे मना भर का पद दिया और वह (सगर) देवनारे में रहने नगा सभा उस ने अपनी प्रति मा से ई एफ घरवीरता के नाम कर दिखाये।। ___ सगर के मोहिरप, गणदास मौर जयसिंह नामक सीन पुत्र थे, इन में से समर के पार पर उस का नोहिरष नामक ज्येष्ठ पुत्र मनीधर होकर देवग्यारे में रहने समा, २९ भी भपने पिता के समान पहा घरपीर तपा मुद्धिमान् भा। बोरिरपी भार्या यहरगदे भी, जिसके भीकरण, सो, जसमछ, माना, भीमसिंह, पदमसिंद, सोमनी और पुण्यपाल नामक आठ पुत्र भोर पदमा माई नामक एक पुत्री थी, इन में से सबसे मरे भीरण के समपर, बीरदास, हरिदास मोर उमण नामफ चार पुत्र हुए। -गि ने गिराया सरमा प्रसार में लिपेपर परम पुर मापा तम उठे भपति पर परमपरा सोनारी से प्रमबाबा या
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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