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________________ ६३० बैनसम्प्रदायशिक्षा रातियों की घोसी की एक डॉग खुसवा कर सब को माफी वी भौर पे सप अपने २ पर गये, वहाँ पर भैंसे साह को रुपारेले बिरुद मिठा ॥ सातवीं सख्या-भण्डशोली, भूरा गोत्र ॥ भी लोद्रयापुर पटन (बो कि सम्मेर से पाच कोस पर है) के भाटी राजपूत सागर रावल के श्रीपर और रावधर नामक दो रामकुमार थे, उन दोनों को विक्रम सबत् ११७३ (एक इबार एक सौ सेहत्तर) में युगमपान वैनाचार्य भी भिनवचसरि जी महाराय ने प्रविनोध देकर उन का माहाबन वंश भोर मचाती गोत्र स्थापित किया, मणमाती गोत्र में विरु साह नामक एक परा माग्यसाठी पुरुप हो गया है, इसके विपर में यह बात प्रसिद्ध है कि यह षी का रोमगार करता था, किसी समय इस ने रुपासमा गाँव की रहने वाली घी बेचने के लिये आई हुई एफ सी से विशपेठ की ऐंडरी (इटोमी) किसी चतुराई से ले ली थी, उसी उरी के ममाम से बिल साह रे पास बहुत सा द्रम हो गया था, इस के पश्चात् मिरु साह ने चोदवपुर पटन में सहसफल पार्धनाथ सामी के मन्दिर का मीर्मादार करवाया, फिर पानमण्गर म्बापित किया, इत्यादि, सात्पर्य महर कि उस ने सास क्षेत्रों में पहुत सा द्रव्य सर्च किमो, भण्पशायी गोत्रपाठे मेग गेद्रवपुर पहन से उठ कर भौर २ देशों में जा बसे, ये ही मण्रचाली सम्मेर में प्रमा महामोरे। एक मण्डचाठी बोधपुर में भाकर रहा भौर राम्य की सरफ से उसे प्रम मिम भव' वह राम्प का काम करने म्गा, इसके बाद उस की औलादगाळे गेग महावनी पक्षा पारेस नाम एक मानपर सेवामा मिस के पाम पता है उसके पास मार (मविषय) व्य होता है। १ भगपा में वासभेप रिय पा इस दिये समसामाग पोत्र स्थापित मा सी मामा मपरम पीर से भपसाम (भागामसी) रो पगा। -पानी गावि की गरिने की भीर र पाबने गिसे स्पानिय मांग मेगापुर पाल में गपी मनेशनेब में ये मा (रेस) रखार पर उसकी परी भौर उस पर पी गे रण कर पा विरमान पर भाई, सिसा इसप पीर मिसा और ही में से पो मम मम सरभो निम्न व ई और स ग में से पोलिसपस बसि समसभा ख में निरिसहमी में इसा पीसे Anा पावापर उसने सारी पर से मेरम राबेसमें पीपीपा बसपा) समागमारी प्रभार पासमार सने मन में AuA रिप्रसार सेना पर पार र सिमरा मपीए पुरा समो प्रेभीर रस निकारन भेरी भेग्मर भागीरथम में रण या म ने रयिम मायरे में भी बनारा पा सरसर
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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