SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 660
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२८ बैनसम्प्रदामविया ॥ दूसरे गेलो बी की मोसादवारे लोग गोमबख्या (गोरेगा) प्रगये। सीसरे उचो बी की औसावकारे लोग तुरा कागये। चौरे पासू बी की बोलावबारे ठोग पारस कहलाये। पारस कराने काहेत यह है कि-माहा नगर में रामा चन्द्रसेन की सभा में विस समम मन्य देश का निवासी एक जौहरी हीरा पेंचने के लिये छामा भौर रामा ने उस हीरे को विसगया, राना ने उसे देल र पपने नगर के वौहरियों को परीक्षा के मि बुग्गा कर उस हीरे को दिसगया, उस हीरे को देस फर नगर के सब बोहरिमों ने उन हीरे की बड़ी सारीफ की, देवयोग से उसी समय किसी कारण से पासू बी का भी राब सभा में भागमन हुमा, रामा चन्द्रसेन ने उस हीर को पास बी को दिसलारा भर पून कि-"यह हीरा सा पासू ची नस हीरे को अच्छी वर देस र बोडे कि"पीनाय ! यदि इस हीरे में एक मागुण न होता तो या हीरा पावर में प्रसंसनीय (तारीफ के गपक) मा, परन्तु इस में एक भबगुण है इस छिये माप के पास रात योम्म यह हीरा नहीं। रामा ने उन से पूछा कि-"इस में क्या भवगुण । पास् वा ने काा कि-"पीनाम! या हीरा मिस के पास रहता है उसके सीनही ठारती, यदि मेरी बात में पापा सन्देश हो छो इस मौहरी भाप वर्मास का रामा ने उस बौहरी से पूछा कि-"पास जी यो काते हैं क्या यह बात ठीक भौबारी यस्पन्त सष्ट होकर या कि-"पृप्पीनाथ ! निस्सन्देह पाम् बी माप नगर में एक नामी मोहरी हैं, मैं बहुत र २ तक धूमा है परन्तु इन समाम कोई मोहरी मेरे देखने में नहीं पाया है, इन कहना विनकुम सत्य है क्योंकि जब मा हीरा मेरे पास मागा था उसके गोरे ही दिनों के बाद मेरी भी गुमर गई थी, उसके मरमे के बाद मैं ने दूसरा विवाह किया परन्म का सी भी नहीं रही, भव मेरा विचार है कि में अपना तीसरा विवाह इस हीरे को निझाम कर (पंचकर) करुगा" जौहरी के सस्पमामण पर राजा बहुत शुश हुभा और उस को ईनाम देकर विदा किया, उसके माने के बाद राय चन्द्रसेन ने मरी सभा में पास जी से कहा कि-"वाह ! पारस ची पाहभाप ने खन ही परीया की" बस उसी दिन से रामा पम् बी पारस पीके नाम से पुचरने म्गा, फिर क्या था यथा रामा हा प्रया मर्थात् नगरवासी भी उ३ पारस पीपर पुरने भगे। परिव सेनरम पीसी मौसममा सोग गहिमा कराये ॥ या भी पुराने में भागापार (मेय या भा) भीमा पारे र पहिंग मलये।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy