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________________ १२२ मैनसम्मपायरिया । द्वितीय सख्या-बरढिया (वरदिया) गोत्र ।। धारा नगरी में यहाँ के राजा मोय के परसोफ हो जाने के बाद उस नगरी का राज्य विस समय ३वरों को उन की बहादुरी के कारण प्राप्त हुआ उस समय मोजतष (मोब की मोसाद वाले ) लोग इस प्रकार हैसोम पा) से मी पुन पर में मानीव मावाद प्राप्त मा सरे-रात्रि समप सरन पर भीमान् भी पम्पन्द जी गोमा साप "भी फलोधी तीयोप्रति समा" रे रसम में यो म समन को भागन हमने प्राप्त हुमा गरमपापि (मग मी) व भूम पाता पस समग सा में बरपुर निवासी भी जनतामार कान्फ्रेंस के जनर सेक्रेटरी भी गुणवन्द जी रा एम ए. मिति के विषय में मपमा भाषणात वर्षा कर मेगा साधुणे (रस्कमा में ) विसिव र हेरे हम ने पहिले पहिस उप माप घ मातम सही एना बा रपमा के दिन प्रातस हमाणे रस महोपस (भीमान् श्री गुलामचन्द जी डा) से मुमत की और उनके साप बनेर रिफ्नों में गाठ देर समपातमिप होता रम उन पम्मीरता और पौजम्प रेस पर हमें ममन्त बारम प्राप्त मा मन्त में उप महाप्नर ने इस से कहा कि-बार रात्रि में पी पुचमार भारि विमों में भारम हागे मतः बाप भी किसी पर में भगत मापन कर भलु इस में भी उप महोरर मनुरोप से पिपुरसार विपक्ष में भापप रना सीघर र मिया मिरान रात्रि में पेष मौ बजे पर उप लिपस में हम ने अपनी प्रक्षिा मनसार मेज के समीप बोर पण सभा में मान प्रबस्ति रीति मावि प्र गोप पर भापमा सरे दिन जब उर मोरम से हमारी बात पुरे उस समय रनों ने हम से या कि-"मति पाप सम्स में तरफ से प्रसपूताने में परेप पर पो सम्मेर है कि पाव सी बाट म अपार से बर्षात् परपूताने मोप मी स्पेत होकर तम्म में पसर इससे उत्तर में हमने प्राक-"ऐसे उत्तम प्रमों परने में हो म सर्व वसर गरेपर्षद समापन 5० न का उपदेश करते है क्योंकि हम मेवों प्र म दीनही परम्त सभा साप से अभी इस प्रर्य करने में में मापारी पोलिस में एक परम-प्रथम गो-मारा पीर असम पय सोपतमान में प्रेसमामयोत्पत्ति विसपने में समचममापम मिति का भरम से इस म प्र प्रेमीकतिपक्षमा प्रराब करा मारमा रोजी री इस पपत् हम एमसी ग्रेवीप्रमेर पसे पसे परेशर पारेपी दिनों में मरमर से भी समर प्रससरफ से पुबा एप पर रम प्राप्त मा विष नकम यों भी सो मिति :भी जैन (Malम्पर) कोम्फरम्स भजमेर १५परपर . पुरा भी महापत्र भी भी श्रीरामय यो भी सेवा में--पनगरसिया--रला माहम ऐन-भर मुसा प रिण-भीर प्रमोपी में मा भाषण मेमोनम से पखाना मारवार में मातबसे मुमपान पुर पयाम है सिप मागण-माप सारपसे अपराधी -भमेवार भी भार मे माममा
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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