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________________ ५९० जैनसम्प्रदायशिया ॥ इस राग सामान्य रक्षम म हि -मर बात और कफ याना एक ही समय में कुपित होकर पीड़ा के साथ निकम्मान भौर सन्धिर्मा म मनम अब है कि विस इस मापी पारीर मम्मित (बका गुनासा) हा वासा, इसी राग भाममात प्रते।। का आचार्या ने यह भी कहा है कि-आमवास में भर्गा मा दटना, महरि, पार, भाउम्प, मरीर का मारी रहना, 'बर, अम का न पपना और दर में शून्मता, में सर उक्षण हाद। __ परन्तु जब भामगात भत्यन्त या जाना है तम उस में भी मयफरता हाती हे मात् यदि फी दमा म यह राग मरे गम रोगों की अपक्षा मपिफ करवाया जाता ६का हुप मामबान म-हाय; पर, मम्तफ, पहि विस्थान जानु भोर जपा, इन की सन्धिमा म पीरा युक्त मूजन हाती है, जिस २ म्मान में यह भाम रस पहुँचता हरा २ पियू' कफ लगने के समान पीड़ा होती है। इस राग म-मन्दामि, मुम से पानी का गिरना, भरधि, देह का भारी रहना, समा का नाश, मुम में निरममा, वार, अविक मूय का उतरना, झूम म पटिनसा, शूल, पान म निद्रा का भाना, गनि म निद्रा भ न माना, प्यास, पमन, प्रम (पार), मम (महोत्री), परम में माम दाना, मला भवराव (काना), जाता, माना पन गूंजना, अफरा पा पातजन्य (वायु से उत्पम दानबा) यापर्मज भावि भवा उपद्रवी का होना, इत्यादि तपम हाते। इनफे सिमाय-बादा से उत्पम हुए भामयात में-पूल हातारे, पिस से उसम र मामरात म-माद ओर रसषमता (मफ रंग न होना) हाती। तमाफ से उसन हुए भामबान मं-रफी मारसा (गीता रहना) आती है तथा अत्यन्त सात्र (मुठी) बस्ती। माध्यामाध्य विपार-एपोप का भामनात रोग साध्य (चित्रिमा स प्रार हीरान माग्म), वा दोपी का भामबाट रोग माप्य (उपम मार टीम निस्सिा रन म दूर दाने मोम्म परन्तु उराम भोर भीम चिनिसा न करने स न मिटने याम भवाम् टसाप्म) तमा तीन दा का भामबाट भसाम्प (पिपिरसावारा भी न मिग्न याम्प) साता। पिफिरमा-१-भामबाट राग म-उपन करना अति उत्तम पिचिरसा। 1-0नो भवन सभापमान भिमपान काम -पीपमुलगा 1-रिसा alkपारन भाम भ णपनमा म पाचन माला"
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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