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________________ ५७० भैनसम्प्रदायशिक्षा ।। पीछे उस फे धुएं का पान (धनपान ) कराना चाहिये, इस से सय प्रकार की साँसी गिट जाती है। ___७-फटेरी फी छाल भीर पीपल के पूर्ण फो पहन के साथ में पाटने से उन पर फी खांसी दूर होती है। ८-प्रभम पहेले फो घृत में सान फर सभा गोषर से उपेट पर पुटपाक पर मेना पाहिये, पीछे इस के छोटे २ टुफ कर मुम में रम्पना पाहिमे, इस से मम प्रकार की सांसी अवश्य ही दूर हो जाती है । ९-मिग्रम की पा और छाल तथा पीपल, इन का चूर्ण फर शहद से पाटना पाहिले, इस से खांसी, श्वास और हिचफी दूर हो जाती है। १०-नागरमोभा, पीपर, दास सभा पका हुआ फटेरी का फस, इन से पूर्ण को भूत भौर शहद में मिग फर चाटना चाहिये, इस के सेवन से धमनन्म सांसी दूर हो जाती है। ११-ौंग, जायफल और पीपल, ये प्रत्येक दो २ खोसे, काली मिर्ष चार पोते, तमा सोंठ सोछह बोले, इन सम फो पारीक पीस फर उस में सप पूर्ण के परामर मिभी में पीस फर मिठाना पाहिये तथा इस का सेवन करना पाहिये, इस का सेवन करने से सांसी, उमर, भरुचि, प्रमेह, गोग, वास, मन्दामि भौर संग्रहणी आदि रोग नर हो पाते है॥ अरुचि रोग का वर्णन ॥ मेव ( प्रकार )-भरुनि रोग भाउ फार फा होता है बावजन्य, पिसजन्य, • जन्य, सजिपातमन्म, शोमपन्य, गयनन्य, अतिलोमनन्म और भविझोपजन्म । फारण यह भरपि मा रोग माय मन को नेश देने मासे मान रूप भीर गन्न मावि कारण से उत्पन होता है, परना सुभुत भादि की भाषायों ने यात, पिच, कार सलिपात तथा मन फा सन्ताप, में पांच ही फारण इस रोग के माने , अतपर उन्होने इस रोग के कारण के मामय से पांच दी भेद भी माने हैं। लक्षण-मासजन्य भरपि में-दाँतों का सा होना मा मुख फा का होना, ये पो कसण हाते दें। पिसमन्य भरुचि गें-गुस-फडमा, म्वष्टा, गर्म, विरस भीर दुर्गन्ध युक रहता है। फफरन्प अरुधि म-गुण-सारा मीठा, पिरछस, भारी भोर पीतल रहता है तथा ति फफ से लिप्त (पिसी) रहती है। घोक, मम, भतिणेग, मोभ भीर मन को पुरे आनेपाळे पदार्था से उत्पन पुरे भरुनि में-मुरा का सार साभाविफ दी रहसा हे भात् पावसम्म भावि परुनिर्मा
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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