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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ ५३७ सकती है किन्तु वह तो उपदेश (गर्मी) के शारीरिक ( शरीरसम्बन्धी ) उपायों के साथ दूर हो सकती है | कठिन तथा मृदु चाँदी के भेदों का वर्णन | संख्या ॥ मृदु चॉदी के भेद || १ मलीन मैथुन करने के पीछे एक दो दिन में अथवा एक सप्ताह ( हफ्ते ) में दीखती है । २ प्रारंभ में छोल अथवा चीरा होकर पीछे क्षत का रूप धारण करता है । ३ दबाकर देखने से तलभाग में नरम लगती है । क्षत की कोर तथा सपाटी बैठी हुई होती है, उसपर मृत मास का थर होता है और उस में से तीत्र और गाढ़ा पीप निकलता है । t ४ संख्या ॥ कठिन चॉदी के भेद | १ मलीन मैथुन करने के लेकर तीन अटवाड़ो में टती है। ५ बहुधा एक में बहुत से क्षत होते है । ६ क्षत का चेप उसी मनुष्य के शरीरपर दूसरी जिस २ जगह लग जाता है वहा २ वैसा ही मृदु क्षेत पड जाता है । ८ वद एक अथवा दोनों वक्षणों में होती है तथा वह प्रायः पकती है । इस क्षत में विशेष पीड़ा और शोथ होता है तथा प्रसर ( फैलाव ) करने - वाले और सड़नेवाले क्षत का उद्भव ( उत्पत्ति ) होता है और उसके सूखने में विलम्ब लगता है । २ ३ ४ ५ ७ पीछे एक से टीख प प्रारम्भ में फुनसी होकर फिर वह फूट कर क्षत (बाव ) पड जाता है । क्षत प्रारंभ से ही तलभाग में कठिन होता है । क्षत छोटा होता है, कोर बाहर को निकलती हुई होती है तथा सपाटी लाल होती है और उस में से पतली रसी निकलती है | बहुधा एक ही क्षत होता है । क्षत का चेप उसी मनुष्य के शरीरपर दूसरी जिस २ जगह लग जाता है वहा २ दूसरा कठिन क्षैत नही होता है । एक तरफ अथवा दोनो तरफ वद होती है उस में दर्द कम होता है। और वह प्रायः पकती नही है । इस क्षत में पीडा तथा शोथ नही होता है तथा इस में प्रसर ( फैलाव ) करनेवाला और सडनेवाला क्षत क्वचित् ( कही २ ) ही पैदा होता है और वह जल्दी ही सूख जाता है। १- मृदु क्षत अर्थात् नरम चॉदी ॥ २- वक्षणों अर्थात् अण्डकोशों में अथवा उन के अति समीपवर्ती भागों मे ॥ ३- कटिन क्षत अर्थात् तीक्ष्ण चॉदी ॥ ६८
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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