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________________ ५३२ वैनसम्प्रदायश्चिषा ॥ भलग २ ही मानना ठीफ दे, तात्पम यह है कि वास्तव में ये दो प्रचार के रोग अनाचार (नवग्नी ) से होते हैं। चाँदी दो प्रकार की होती है-मृदु भोर कठिन, इन में से सूदु चाँदी उसे प्रते हैं कि नो इन्द्रिय के निस भाग में होती है उसी जगह अपना असर करती है मर्मात् उस भाग के सिवाय शरीर के दूसरे मागपर उस का मुछ भी मसर नहीं माराम होता है। हां इस में यह बात तो मपश्य होती है कि जिस जगहपर यह पाँदी हुई हो वहां से इस की रसी ठेकर यदि उसी आवमी के शरीरपर दूसरी जगह म्गाद बावे तो उस मगहपर भी वैसी ही चाँदी पर बाती है। दूसरे प्रकार की कठिन (जी वा सस्त) घाँदी वह होती है जिस का मसर सब शरीर के ऊपर मालम होता है', इस में यह मड़ी भारी विक्षेपता (खासियत) कि इस (दूसरे प्रकार की) चाँदी का पेप सेकर यदि उसी भावमी के भरीरपर दूसरी जगह लगाया जाये तो उस जगहपर उस प कुछ मी मसर नहीं होता है, इस कठिन चाँदी को तीक्ष्म गर्मी भर्मात् उपदंश का मर्यकर रोग समझना चाहिये, क्योंकि इसके होने से मनुष्य के शरीर को पड़ी हानि पहुंचती है, परन्तु नरम चाँदी में विशेष हानि की सम्भावना नहीं रहती है, इस के सिवाय नरम चाँदी के साथ यदि बदगांठ होती हे तो यह प्रायः पकती है मौर घटती है परन्तु कठिन-चाँदी के साथ जो मदाँठ होती है वह पफसी नहीं है, किन्तु पहुस दिनोंतकनी और सूची हुई राती है, इस प्रकार से ये दो तरह की चाँदी मिन २ होती है और इन का परिणाम ( फस) भी मिल २ होठा है, इस लिमे यह महुत मावश्यक ( बहरी) पात है कि इन दोनों को मच्छे प्रकार पहिपान कर इन की योम्म ( उधित) चिहिस्सा करनी चाहिये। नरम टाकी (साफ्ट शांकर)-पह रोग प्राय सी के साथ सम्मोग करते समय इन्द्रिय के भाग के छिस बाने से समा पूति (पहिले कहे हुए ) रोग के चेप के रुगने से होता है, यह पाँदी प्राय दूसरे ही दिन अपना विसाप देती (दीस परती हे) मवषा पांच सास दिन के भीतर इस का उदय (उत्पपि) होता है। यह (टांकी) स (सुपारी मत् इन्द्रिय मप्रिम भाग) के उपर पिछले गड्ढे में 1-भाव पापपर के मन्य मामें में बस्ती २-त् एव पापी मसर से पसरपर मननपर (ऊसी रोकते मौर बॉमी भार) यस ऐता ३-अर्षात् सप्रेरती पाने से परे सानपर पॉरी बाई परचम -योगाम से प्रभर चरस पाउपानिमय देवि विपिसारने से मना पिमिसा ही सर्व बारेश्युत (कन्तु) रमी सनि हो जाती है। -साफ्र मात् मुममप मा मम ॥
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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