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________________ बैनसम्प्रदायशिक्षा । पूरनपोठी, कोला, ईस, मप, गुरु, सराप जल, फस्तूरी, पर्या के सम साफ, की तमा खरे पदार्थ, ये सब कुपथ्य हैं ममात् ये सब पदार्थ इस रोग में हानि करते हैं। यह मी स्मरण रखना चाहिये कि-इस रोग में चाहे भोपथि कुछ देरी से ली चाय तो कोई हानि नहीं है परन्तु पग्य खान पान करने में पिलकुल ही गलती (भूम) नहीं करनी चाहिये । मरोड़ा, आमातीसार, संग्रहणी (डिसेण्टरी) का वर्णन ॥ मरोरा, आमातीसार और संग्रहणी, ये तीनों नाम लगमग एक ही रोग के हैं, क्योंकि इन सप रोगों में प्राय समान ही रक्षण पाय बाते हैं, वैपक शान में बिस को अमा सीसार नाम से करा गया है उसी को ठोग मरोरा फारसे हैं, अतीसार और भामातीसार अब पुराने हो जाते हैं तब उनी को समहणी करते हैं, इस मिमे यहां पर तीनों को साथ में ही विसावे हैं, पोषिअस्मा (स्मिति वा हाम्त ) के भेद से यह माय एकही रोग।। ___ यह रोग प्राय सब ही वर्ग के लोगो को होता है, जिस प्रकार एक विशेष प्रकार निपेली हना से मिशेप बाति के रोग फुट कर निकलते हैं उसी प्रकार मरोड़े रोग का मी कारण एक विशेप मकार की विपेठी हवा और विवेप प्रत होती है, क्योंकि-मरोडमा रोग सामान्यतया (सापारण रीति से) तो किसी २दी और फमी २ ही होता परन्तु किसी २ समम यह रोग बहुत फेसता है तथा वसन्त और पर्या पातु में प्रार इस का चोर भाषिक होता है। फारण-मरोड़ा होने के मुस्मतया दो कारण है-उन में से एक भरण इस रोप की नाहै भार एक प्रकार की टरी हना इस रोग को उत्पम करती है मीर उस हमा का मसर प्राय एक सान के रहने वाले सब लोगों पर पपपि एक समान ही होता १-पापात पाइसी रोग में नीतु सब ऐप में म्याम रखनेोग्य मोर-परि सिरे-पम्प न रम्ने से मोपपि से भी अम नही होता है मा पथ्य रने से मोपपि *ने मी विशेप मापश्यता यईराध परम् श्मी बात बासी रोमों में रुपम बहुप निम्न से सपा पोग हो पनि करता है परन्तु मर्मसार भारि रोपों में पम पीघ्र ही वर्ग मारी पनि रवास लिसेस (बीसार भावि रो) में पपि पेमा पभापर भपिर ध्यान देमा प्रदिसे ॥ -पर्व में स्पिति (हाम्त) * मेर से भटीपार रोमनों नाम प र मत एस म मे वहांपर न चम्प्रे पाप में किया है बब यो स में स्थिति में मेर (रस अपन पकायेम भामे म्मिा से पायेण । -इस पाने के समय मनुषों में भविप मा एच रोप से पीड़ित था । -हसत भार पर्म का मैम से का और कामु सपने से प्रय' भमि मम पती॥
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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