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________________ विन भर परेर तवा परिमाया है, पेलिपे गले के सपरे । ५०८ भेनसम्प्रदायशिक्षा ।। ___ पुराने अजीर्ण (डिसपेपसिया) का वर्णन ॥ पर्वमान समय में यह अनीर्म रोग बड़े २ नगरों के मुघरे हुए भी समाज का उपा प्रत्येक पर का सास मर्न पन गया है', देखिये ! अनेक प्रकार के मनमाने भोजन करने के शौक में पड़े हुए सबा परिमम न करनेवासे मर्थात् गद्दी तफियों का सहारा लेकर दिन भर पड़े रहनेवाले अनेक सम्म पुरुयोपर यह रोग उन की सभ्यता म कुछ विचार न करे वारंवार भाक्रमण (हम) करता है परन्तु मो लोग चमचमाइटदार मा साविष्ट खान पान के आनन्द और उनके शौफ से पत्र में समा मो लोग रात को नाच तमाशे और नाटक आदि के देसने की मत से पप कर सापारमतमा भपने जीवन का निर्वाह करते हैं उनपर यह रोग प्रामा दया करता है भात् घे पुरुप मायः इस रोग से नये रहते हैं। पाठकगण इस के उदारम को प्रत्यक्ष ही देख सकते हैं कि-पई, हैदराबाद, कर पसा, बीकानेर, महमदाबाद और सूरत भावि जैसे शौकीन नगरों में इस रोग का अधिक फैलाव है वमा साधारणतया निर्वाह परने योम्म सर्वत्र माम मावि सानों में दूरने पर भी इसके मिह नहीं दीसते हैं, इस का कारण फेवल मही है वो भभी पर पुरे हैं। __ इस बात म भनुभव तो प्रायः सब ही को होगा कि बिन धनवानों के पास सुस सब सापन मौजूद है उन की अमानतासे उन के कुटुम्म में सदा मादी और बदहजमी रहती है तथा उसी के कारण शरीर भौर मन की अकि उन पर भी पीछा नहीं छोड़ती है। लक्षण-भूस तथा चि का नाश, छाती में वाह, सही उकार, उपफी, नमन (उम्टी), होनरी में दद, यायु का सनो, मरोरा, भरक (पदय का पाना), भास पा हाना, शिर में दर्द, मन्दन्नर, भनिद्रा (नीद पा न माना), बहुत समान माना, उवासी, मन में बुरे विचारों का उत्पत होना तथा मुंह में से पानी गिरना, ये इस भनीण के क्षण हैं, इस रोग में अस ननरों से भी देसे नदी मुहाता है और न 1-OR E-पहिले पोभान रोम रत्तम दुभा पा उस वैबर से निमियम प्यने से पाप मानेनने मिभ्य भार भीर कि सेवन से रख पर प्रस्म रोस पर प्रोक पर एक प्यम मर्म बन पगारे १-अन्त्य सम्म पुरन यसकाई, दस पाव भी पारमर १-उमरियाने पीने भारिरिक्षेत्र परम पार तथा यानि RAR पर भम र भाव र सवारोपमा 1- प्र मभी नियरे मी दरियरपोरiu ५-भरावाचार मनायुविषबम माnिाप्रमा
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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