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________________ १७८ बैनसम्प्रदायशिक्षा। २ पुराना होता है त्यो २ मन्वनेगवाग होता है, इसी को असिम्मर (भसि वर्ग हाड़ों में पहुँचा हुआ ज्नर) भी कहते हैं। __लक्षण-इस ज्वर में मन्दवेगता (मुसार का वेग मन्द), शरीर में इसापन, पमरी पर धोम (सूजन), भोपर, जौ का अकरना तथा कफ का होना, ये रूप होते हैं समा मे रक्षण नन फ्रम २ से पढ़ते जाते हैं हम वा बीर्मज्वर फरसाध्य हो जाता है। चिकित्सा-१-गिलोय का फाढ़ा कर तथा उस में छोटीपीपल का पूर्ण तया शहद मिलाकर कुछ दिन तक पीने से वीर्णज्नर मिट जाता है। २-सासी, श्रास, पीनस तथा महषि संग मदि जीर्णज्वर हो तो उस में गिलोय, भूरीगणी सबा सोंठ का फादा पना पर उस मे छोटी पीपल का पूण मिम फर पीने स मह फायदा करता है। ३-हरी गिलोय को पानी में पीसकर तमा सन्न रस निचोड़ कर उस में छोटी पीपर सभा वहद मिला कर पीने से वीर्णबर, कफ, सांसी, विष्ठी और भरुचि मिट जाती है। ४-वो भाग गुरु और एफ भाग छोटी पीपल का पूर्ण, दोनों को मिला पर इसकी गोली मना र साने से भवीर्ण, अरुथि, अमिमन्दता, सांसी, श्वास, पाणु सभा भ्रम रोग सहित पीपर मिट जाता है । ५-छोटी पीपल को शहद में पाटने से, भभमा भपनी शक्ति मोर महति के अनुसार वो से उपर सात पर्यन्स छोटी पीपा को रात को मठ को बस में पा दूध में भिगा कर -बाजरकम से पानी पानु में वाद परिसास में किराए में शिर मांध में फिर मर में फिरपी में फिर ममा में और मि एम्में तार इस भर ममा भौर एक पान में पपने पर रोगी प्रबचना सम्भव हो पाया। १-या सरपएस भर पावसम्म , ग्रा में ब सब मभन पाये जात पा सर काय माया पाता नगर में रोमी गोपन माना पारिसे को पनपने से ज्यो १ रोमी धीर रोख पारम्प मापा पर बरसा पम्म गारेगा -पीपल का पूर्व भनुमान । मासे गमना वारिस पाभीसारो मेमता हमें भारमा वारिसे सपा ने अस पेज एपमा कारसे नामक ममि ममता प्रभार मरिक (मा) ग भी मिटाता सारे पिरम भारावा भी सम्मानित (मामि से पर) रोग मारप, किसे से मायनदेय पारिन (परत प्रमतररामिना तो भी सामना ये माला में प्रवासमा भाभि तिप्रभानस्थ में पीपा पूर्वन गर बामपन्यपणे
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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