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________________ चैनसम्प्रदायशिक्षा || कफज्वर का वर्णन ॥ कारण – कफ को महानेमाले मिथ्या आहार और विहार से दूषित हुआ कफ ठर में खाकर तथा उस में स्थित रस को दूषित कर उस की उष्णता को बाहर निकालता है, एष कुपित हुआ वह कफ वायु को भी कुपित करता है, फिर कोप को प्राप्त हुआ बायु उप्पा को बाहर लाता है उस से कफम्मर उत्पन्न होता है । १५८ लक्षण है, इस के लक्षण – भन पर मरुचि का होना, यह कफज्वर का मुख्य सिवाय अर्गों में भीगापन, ज्मर का मन्य वेगे, मुख का मीठा होना, भाबस, तृषि का माम होना, छीत का साना, देह का भारी होना, नींव का अधिक आना, रोमा का होना, छेप्म (कफ) का गिरना, भ्रमन, उबाकी, मला मूत्र, नेत्र, स्वचा और नल का श्वेत (सफेद) होना, श्वास, खांसी, गर्मी का प्रिय उगना और मन्दामि इत्यादि दूसरे भी वह इस ज्वर में होते हैं, यह कफज्वर प्राय कफपकविणाके पुरुष के तथा कफ के 1 कोप की ऋतु ( वसन्त ऋतु ) में उत्पन होता है । चिकित्सा - १-कफज्वरवाले रोगी को अपन विचेप सब होता है सभा मोम्ब कंपन से दूपित हुए दोष का पाचन भी होता है, इसलिये रोगी को अब तक अच्छे मकार से भूख न लगे तब तक नहीं खाना चाहिये, अथवा मूंग की दाल का भोसामण पीना चाहिये । २ - गोम का काडा, फांट अथवा हिम शहद डालकर पीना चाहिये । ३-छोटी पीपल, हरड़, बहेड़ा और औसा, इन सब को समभाग ( बराबर ) लेकर तथा चूर्ण कर उस में से तीन मासे भ्रूण को शहद के साथ चाटना चाहिये, इस से कफ उबर तथा उस के साथ में उत्पन्न हुए खांसी श्वास मोर फफ दूर हो जाते हैं । १-कफ को बड़वार-सिम्मी तथा सपुर पक्ष वा कफ को वि अधिक थिए आदि जानने चाहिये ॥ १ सोपाई - नमी रहई उस वृति श्री वन गइ १० भारी व भवि शिरोम उपसचि मूत्र मरा दिया जासू व मेवा ॥२॥ दमण उवाकी उप मम एक पर भी ४० है इसका भी मेम मग है । कासमा तृप्तिकारक (तुसि करने) तिने कम्पन का विशेष इन विवाहमय हो जाए लिग पर कवि महोन से भी उसको सपना है ॥ रात्रि पान
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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