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________________ १५१ चैनसम्प्रदायशिक्षा लपड़ी वा पोल्टिसो का माटा, मसी, नांव के पसे तगा कांदा प्रवि को जस में पीस कर या गर्म पानी में मिला कर ठगदी मना कर शोष (सूचन) वया गुमड़े भादिपर मांधना चाहिये, इसे सूपड़ी वा पोस्टिस कहते हैं। सफ सेंकई प्रकार से किया जाता है--कोरे कपड़े की वह से, रेत से, ईंट से, गर्म पानी से मरी हुई काप की शीधी से और गर्म पानी में उनाकर निपोरे हुए फग छैन मा उनी कपरे से अपना पाफ दिये हुए कपड़े से इत्यादि । स्वरस-किसी गीरी पनसति को मॉट (पीस) र भावश्यकता के समम योग सा मल मिला कर रस निनल मेना चाहिये, इसे स्वरस करते हैं, यदि वनस्पति मीगे न मिले तो सूसी दवा को भठगुने पानी में उबाल कर पौधा माग रसना चाहिये, मवमा २४ घण्टे सफ पानी में भिगाकर रस छोड़ना चाहिये, पीछे मर कर छान भेना पाहिले, गीठी वनस्पति के सरस के पीने की मात्रा वो वोठे है तमा सूसी बनस्पति के सरस की मात्रा चार सोरे है परन्तु पाठक को सरस की मात्रा भामा सोग देनी पाहिमे । हिम-भोपपि पूर्ण को गुने बस में रावमर मिगार जो मात कास धान कर लिया जाता है। उस को हिम कईसे हैं। क्षार-चो भादि वनस्पतियों में से बालार मावि धार (सार) निकाले जावे । इसी प्रकार मूली, कारपाठन (धीग्वारपाठा) या भोपासाला भावि भी बहुत सी पीमों का सार निकाला जाता है। इसके निकास्ने की यह रीति है कि वनस्पति को मूठ (जर) समेत उसादर उसके पपांग को बहा कर रास पर सेनी पाहिये, पीछे चौगुने जस में हिस्सा कर किसी मिट्टी के बर्तन में एक दिनतक रसार ऊपर का निवरा हुभा पर कपड़े से मन सेना 1-1-पोन रोपप और मेयाम ने वीप मुम्म मेरापीमा में-माग पिचपोरा में रोष सपए में पिसा प्रावाइन ATM बाद म सिम - मम् में देराम पारिये पर भी सामरकड रिम में पनपादिसे परम्नु भनि भाषरस पर्वाद ममा गामी ऐम ऐसे राति समय में भी परवा चाहिये। २-पानीमा मुख मन मनमी पो से परमे पिपरि यिपुर। -मसति पानी पीने कसरी अमि बीरप भारिसे दिमड़ी न हो। ४-ससरप वपा भमरस भी पती॥ मरम पा रए भी पर नापीवसाय भी पइस पीने श्री मात्रा पन मन् ॥ -निना में कार (ोणा) ने भी पति बानि पीएफ की पप एर पीस(O)मेरपी में मार मारेला में पा पाली मा ॥ बार मा पाय रिस पती पत्र में भरभरायपीसे गावी प्रसार पूर(पूर्ण गमा)nामगार सीधे पगार (मापार) प्रवे।
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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