SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मिमा पिपिपरे पिम्वार से प्रतिपादन की गई है उसी के भनुमार मिश का किन्तु वास्पर्य यारे-मिस मकार किसी भीष को दुस म पहुंचे उसी प्रकार मित्रा लाषे शास्त्रों में लिखा है मैस भमर फूलों में रस लेने को माने १ बिन्तु रस से अपने भास्मा की सप्ति यो पर जेवे है फूलों से पोरित नहीं भरते उसी प्रकार मिम उस चि मे भाार लाये जिस पकार किमी भास्मा,को दुस न पहुंचे इसना की - विन्त फिरभी प्रापार रक्ष मारा मी परिमाण म पषि साया एमा हानिकारक हो पाता है जैसे परेपन से भाग पोर मा पर रूप पारण कर खमीर दर शुप्फ भार मी मिनु क लिए मुख फारफ नहीं होया पथा गैस फोटे स्फाटफ भापषि का माग किया मावा है फेषत गग शमन F लिए ी हावा घरीर की मुन्दरमा लिए नी । रसी मझार मितु माणों की रमा रेखिए पा सयप निर्वाह लिपी मार पर अपितु पय मादिदी दिलिर नमरे पस्न पूर्व माहार मामा फिर मिस मोठारे पा रफ स में भी परोना परिप
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy