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________________ १२८ मैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ १-पित्त-यपपि मूत्र के रग के देखने से पिच का अनुमान कर सकते हैं परन्तु रसायनिक रीति से परीक्षा करने से उस का ठीक निमय हो पाता है, पित्त के मानने के लिये रसायनिक रीति यह है कि-मूत्र की बोड़ी सी द को फार फे प्यासे में भपवा रकेनी में राम कर उस में मोड़ा सा नाइट्रिक एसिड हाम्ना पाहिये, दोनों के मिलने से यदि पहिले हरा फिर मामुनी और पीछे मक रंग हो जाये तो समझ लेना चाहिये कि मूत्र में पिच है। २-युरिक एसिर–रिक एसिर मादि मूब के यपपि सामाविक तास परन्तु ये भी जब मपिक वाते हो तो उन फी परीक्षा इस प्रकार से करनी पाहिले कि-मूत्र को एक रफेवी में राल कर गर्म फरे, पीछे उस में नाइट्रिक एसिर की मोडी सी बूंद गल देवे, यदि उस में पासे बैंप या तो जान सेना चाहिये कि मूत्र में यूरिया अधिक है तथा मूष को रफेची में गल कर उस में नाइट्रिक एसिह राठा जावे पीछे उसे पाने से यदि उस में पीछे रंग का पदार्म हो बारे तो बानना चाहिये फि मूत्र में यूरिक एसिड बाया है। ३-आलम्युमीन-आस्यमीन एक पौष्टिक तत्त्व है, इसलिये बप पह मूत्र के साथ में माने छगता है तब शरीर कममोर हो आता है, इस के गाने की परीक्षा इस रीति से करनी पाहिये कि भून की परीक्षा करने की एक नग (सुब) होती है, उस में दो तीन रुपये भर मूत्र को सेना चाहिये, पीछे उस नरी के नीचे मोमबती को बला कर उस से मूत्र को गर्म करना चाहिये, जग मूत्र उर. स्ने सगे सन उस के अन्दर भोरेके वेमार की भोड़ी सी दे गा देनी पाहिये, इस की दो से मूत्र मादों की वर घुबला हो बायेगा भौर वह धुपग हुआ मूत्र यम ठहर बामेगा तय उस में यदि मालम्युमीन होगा तो नीरे पेठ बारेगा और भीलों से दीसने सगेगा परन्तु मूत्र के गर्म करन से अभया गर्म फर उस में शारे के तेनार की दें राग्ने से यदि वर मघ धुपसा न होवे मरमा धुपम रोकर (भापन मिट जाये तो समझ ना पाहिमे कि घ में भामसुमीन नहीं जाता है, इस परीक्षा से गर्म किये हुए और नाइट्रिक पसिष्ठ मिसे हुए मूत्र में ममा हुमा पदार्भ धार होगा वो यह फिर भी मन में मिल जायगा और माम्। गुमीन होगा सा पसे का वैसा ही रहेगा। युगर अर्थात् शफार-बम मूत्र में अधिक याम शफर बाची हे सप उस रोम को मधुपमेह का भयपुर राग है, इस रोग पहते पाहते में मूत्र पदुत मीय सफेद 1-सर मग वाम पेनाप विपरीम (मप) पर मत ( परन्तु आये प्रेमे मोम पत्तीरी मानी पार.
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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