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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ १०७ दोहा-वात वेग पर जो चलै, सांप जोंक ज्यों कोय ॥ पित्तकोप पर सो चले, काक मेंडकी होय ॥१॥ कफ कोपे तव हंसगति, अथवा गति कापोत ॥ तीन दोष पर चलत सो, तित्तर लव ज्यों होत ॥२॥ टेढ़ी है उछलत चलै, वात पित्त पर नारि ॥ टेढ़ी मन्दगती चलै, वात सलेषम कारि ॥३॥ प्रथम उछल पुनि मन्दगति, चले नाड़ि जो कोय ॥ तो जानो तिस देह में, कोप पित्त कफ होय ॥४॥ सोरठा-कवहुँ मन्दगति होय, नारी सो नाड़ी चले ॥ कबहुँ शीघ्र गति सोय, दोप दोय तव जानिये ॥५॥ दोहा-ठहर ठहर कर जो चले, नाड़ी मृत्यु दिखात ॥ पति वियोग ते ज्यों प्रिया, शिर धूनत पछितात ॥६॥ अति हि क्षीणगति जो चले, अति शीत तर होय ॥ तौ पति की गति नाश की, प्रकट दिखावत सोय ॥७॥ काम क्रोध उद्वेग भय, व0 चित्त जिह चार ॥ ताहि वैद्य निश्चय धरै, चलत जलद गति नार ॥८॥ छप्पय-धातु क्षीण जिस होय मन्द वा अगनी या की। तिस की नाड़ी चलत मन्द ते मन्दतरा की ॥ १-दोहों का सक्षेप में अर्थ-वातवेगवाली नाडी साप और जोंक के समान टेढी चलती है, पित्तवेगवाली नाडी-काक और मेंडुकी के समान चलती है ॥ १॥ कफवेगवाली नाडी-हस और कबूतर के समान चलती है, तीनों दोपोंवाली अर्थात् सनिपातवेगवाली नाडी-तीतर तथा लव (वटेर) के समान चलती है ॥ २॥ वातपित्तवेगवाली नाटी-टेढी तथा उछलती हुई चलती है, वातकफवेगवाली नाडीटेढी तथा मन्द २ चलती है ॥ ३ ॥ प्रथम उछले पीछे मन्द २ चले तो शरीर मे पित्त कफ का कोप जानना चाहिये ॥ ४ ॥ कभी मन्द २ चले तथा कभी शीघ्र गति से चले, उस नाडी को दो दोपोंवाली समझना चाहिये ॥ ५॥ जो नाडी ठहर २ कर चले, वह मृत्युको सूचित करती है, जैसे कि पति के वियोग से स्त्री शिर धुनती और पछताती है॥६॥जो नाडी अत्यन्त क्षीणगति हो तथा अत्यत शीत हो तो वह खामी (रोगी) के नाश की गति को दिखलाती है ॥ ७ ॥ जिस के हृदय मे काम क्रोध उद्वेग और भय होते हैं उस की नाडी शीघ्र चलती है, यह वैद्य निश्चय जान ले ॥ ८ ॥ जिस की धातु क्षीण-हो अथवा जिस की अग्नि मन्द हो उस की नाडी अति मन्द चलती है, जो नाडी तप्त और भारी चलती हो उस से रुधिर का विकार समझना चाहिये, भारी नाडी सम चलती है, बलवती नाडी स्थिर रूप से चलती है, भूख से युक्त पुरुष की नाडी चपल तथा भोजन किये हुए पुरुष की नाडी स्थिर होती है ॥ ९॥
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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