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________________ ३३१ जनसम्प्रदायश्चिया ॥ पर धारण में मुम्प पिपप के तरीके पर नियत फरना चाहिये, हमारे इस कथन प्रमा प्रयाजन नही कि भीमती सकार का कास में नियत कर % सम्यूम ही पक विध की शिया वनी माहिम न्तुि हमार भन का प्रपाजन यही है कि फम से फम हवा, पानी, सुराक, सफाई और पसरत भादि फ गुण दापाशी आपत्यफ शिक्षा का अवश्य दनी री चाहिय जिग क पताय से प्रतिदिन ही मनुष्य को भ्रम पड़ता, इस फेलिमे सहन उपाय यही है कि पाटग्राम में पटाने क लिय नियत फी र पुस्तकों के पार्टी में पहिक मो इस विद्या के सामान्य नियम भवताय ना जा कि सरठ मोर उपयोगी हो तथा जिन क समझने म यिपाभिमां का अधिक परिमम न पर, पीछे इस (विपा) सूक्ष्म सियों का उन्ही पुस्तक पार्टी में प्रविष्ट फरना चाहिय । पभमान माइम रिपा की कुछ यात मूह में परी पड़ाद भी जाती हैं उन्हें गोम जानफर उन पर पूरे सोर स न सो कुछ प्यान दिया जाता भार न मे माते ही ऐसी है कि पाक रिठपर अपना कुछ प्रमाय गल सफ इसलिये उन न पाना पाना निमफुल मय बनाता है, दमा ! स्कूल का एक विद्वान् विपार्श भी (जिस ने इस सिया पी मह निशा पार हे सभा दूसरा का भी विधा फेबन मा भधिकारी हो गया है कि साफ पानी पीना चाहिय, साफ पर पहरने पाहिमें तथा प्रकृति के भनुकूल मुराक सानी पाहिम ) भर में जाकर प्रतिदिन उपयाग म आनवाठी बस्नुर्भा के भी गुण भार दोप पान जान पर उन का उपयाग करता, मम कहिस यह फितनी भज्ञानता है, करा मम में विशाम पान का यही फल दे। मूल का पदाम पिपा का मे एक विधामी यदि यह नहीं जानता है फि मूली भोर प सभा मूंग की दाल और दूध मिश्रित कर मान सघरीर में भोडा २ नहर प्रतिदिन का होकर भविष्य में क्या २ बिगा। फरवारमा उस पदापिपा पाने से क्या काम है। मम सारा हा सही कि ऊपर लिप्पी दुइ पफ छार्टीमी मास की भी मर मियामी म कि सम में भी नहीं जानता मा भारोम्ममा फ पिप नियमो को मह पार जान समता पास उनके जानन भरिपारी हो सकना ! मगर उप पथा मिपाी भी जो कि भाप्रस प्रभार सारा की गति वा उन के परिसचन निया को कण्टयम पर पाने मनुर्भा परिषचम म शरीर में क्या २ परिवचन दावा है उस किये डिस २ भादार बिहार की संभाल रमनी चाहिम इत्यादि मा मिस नहीं जान १.वी प्रचार मूस और चन्द्रमा प्रहमभरणमा उनसे भाफपण मे समको मदानबार बार भाट (उसार पाप) नियम को तो (विपा ) समझ सगे पान इस प्रहपाउरीर पर या भसर होता है भोर उम्भापप स घरीर में नमपस में हम पर yिru - -
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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