SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 364
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनसम्पदामशिक्षा || सर्वहितकारी कर्तव्य ॥ शरीर श्री भारोग्या स्मोकी जा २ गुप्य पार्वई उन सब का जानना और उन्हीं के अनुसार ना मनुष्यगात्र की भाग्य है, इस विषय में आपक माती का संबद रोक्षेप से इस धर्म कर दिया गया है, जब विमारीह देकि-शरीर की भारोम्यता के लिये जा २ भापक नियम है ये रामदीयागाय मान के आधीन नहीं न्यु जाग से कुछ यि भागी था कुछ नियम पराधीन है, तुम ! भाराम्साजन्य गुरा के लिये को उचित आदार भोर विहार की भाव क्या है इसलिये उसके निम को समझ कर उन की गयी रमना यद प्रत्येक पुरुष है कि आहार और बिहार के आयत्यक नियम मत्येक पुरुष के गाधीन है परन् नगरों की सफाई और आवश्यक मी का करता कराना आदि भागश्यक नियम प्रत्येक पुरुष के भागीन महा ई से नियम सभा के नियत किये तुम शहर सफाई भावे के भमछदारों के भागी है, इसलिए इसको पादिका भारोग्यवाजन्य एस के किये पूरी २ निगरानी रखने तथा जो २ धाराम्यता के भाव 管 एक उपाय मजा के भामीन है उन पर मना को पूरा ध्यान देना पाहिले, कि उन उपायों के आपने से घथा उन पर पूरा ध्यान न देने से भान मजाजन भनेक उप 可 और रोग कारणों में फँस जाते है, इसलिये भाराम्यता के भावस्य उपा जानमा मध्ये छोटे भड़ गया है, कि के बान से बड़ी होती है, ऐसा कभी २ मनुष्य की दी भासा से दारी का की आपको मग पहुच जाती है, पर मद ही जानते है कि साधारण पुरुष उपदेश और शिक्षा के मिना कुछ भी नहीं सीम सकते हैं और न कुछ जान सकते है, इसलिये जाम मजाज को भादार और विहार भारि भारोम्यता की आवश्यक वार्ता विभ करना गुरुमा विधान पै डाटर और पकार का हाथ है भ लोग भाग्य के द्वारा सी रहे इस प्रकार के कारनेपाळे ब राकापेचक विद्या का अपश्य उपर करत भाभिर्षात्नेश और डाट को भय है कि रागों की उत्पधिक कारणों को साम२ र नादिर रे, उन कोटा भर में कारण पिहो सके इस का पूरा करें और उन कार के हटाने के भाग्य उपायों से मजान को विभ्र पर धषा मजाजनों का भाहिये कि उन भावस्यक उपायों को समक्ष कर उन्ही के अनुसार बचाव करे उप से पि कि उससे विरुद्ध भखने से नियमों की पायन्यी जाती रहती है और म जाता है ! यूनीसिपल कमेटी के अपरी महि जनपद २ रा से गयी छषा राम हमे जाकर रामासाम कर पाई जियनी सफाइ पर्स पर ३३२
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy