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________________ ३२५ जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ सुन्दरता मपी धन से प्रचण्ड सप धारण किये एप पन्ती र फामामि है भीर प्रमी पुरुप उस में अपन मोपन और धन फी भातुति देते" पुन भी उफ महारमा ने पा है फि-"वेश्या का भपरपाउच मदि सुन्दर हो तो भी उस फा घुम्मन पुटीन पुरुप फो नदी करना चाहिये, पांकि यह (येश्या 'म अपरपास) तो ठग, चोर, वास, मट और जारी फे फने फा पाप है" इस मिपयों पफ खान का फान है किधेश्या की यानि सुनाम और गमी भादि थेपी रोगी का अमस्थान दे, भोर विचार र देखा जाये तो यह माव मिलकुम सत्य है भोर इस की प्रमाणवा में छासा उदाहरण प्रत्यक्ष ही वीस पाते हैं कि- वेश्यागमन फरोपाला के उपर फहे हुए रोग प्रायः दो ही जाते है जिनकी परसादी उन फी पियाहिसा सी भीर उन फे सन्तानाधा को मिरती है, इसका कुछ पणन भागे पिया जायगा । ५मपपान-पांमयो स्मसन मद्यपान दे, पह भी म्पसन महाहानिकारफर, मय के पीन स मनुष्य भेसुध हो जाता हे मोर भनेक प्रकार के रोग भी इस से हो जाते है, समटर लोग भी इस फी मनाई करते ई-उना फन है कि-गय पीनेयाला के पासपोर तमाम ने विपारा -मरे साथ में रागनीभार व प्रपर माम में पाचा गरा सलाबारमा गमिल भपभी पारी मा साना फमरे, एका दिपार बराबन एस पी पक्षापारा पासा पापा भी विपारने की ४ि मुभा १ पदापानमिना? मगर कावास मेरे मन मेरा मुसा साप इग प्रिया उत्तम पम राणाभैरो भएस. एगा बनाएर गगनबार पर पर रामारा भार सोप गुम रागा पभरामा मापने गा भीर ममम विपारने मगारा सोम ने भनी पीना रिमापार मसापसापायीपमा भाविरमा मरने पर रामाप वाछ माम ऐपया भीर उग मासूम होने। राम मी पमा भषामा पराग्य प्रमाभा गि धाचार मामी भारिप TOust मा म ग समय उस पर fr-विम्वनि प्रमविपरिका । पम्पबननाम्याचा सम्मान kी पापिरम्या । सिमरन माप माप ॥1भार गि प्रियतमा भवनी बीपी निरवर प्रामों भी भरिनिय मामास AG परसम्म पु सotीर (म्म पुर) पीपर भाराचा (अप ग्री) मुम प्रग प्रिमायाभा पुरा गरे भिरती २० सम्म (एपीसो पार भी भी भाप परभाराचा सपनोभेम Fratममा मुम भागमसभी पिसा पाचपा न भरपतमाम पारामा भार मारामार aur भोला? भागतान ताप परिमा पनि मनार andu परमपयन unst 40 मार मार मनायि
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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