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________________ समयायधिश्वा || सारवूपक यमाय फरोगाले पुरुषको का सुपर भी यही है कि सदा सर्वागगुणा दे उसका जाने इस किये का मारकर सभासमय इसी मागपर पक्ष इरा गाग पर चलने में भरागम हो तो इस गागार दी करत रहना पादिग या जगने इरादे को सरा अच्छा मा मनुष्य को पाकर भी ऐसा हरेका मिलना ही व्यथ दे । परमार घोष का विषय है कि 1 आग लोगों की शुद्धि भार जिनेक है, देखो! भाग्यवान ( श्रीमान्) विनयी, गुलमार और मीन को देते में और माया सदाचार से रहित हो के कारण नष्टमाय दोग पुरुष यो माया भयो पारा लगे, मरगारा, महाछोकीन, जातिपाले पुरुषों की रपये है, पेसा छ २ जग की संगति दी करते है दिये में दस मे सदा द्वार भोर राद्विवार को से उत्पन हो सकता है। सिइसी कारण से गपगा गमायोग्य आधार राविचार भोर राश्संगति बिलकुल ही उठ गए, इन लोगों के गुप का अकमल नही उपाय दे कि ये छाग रागको छोड़ पर भीति और धर्मशास्त्र आदि मथो का देने, मररोग पर, भष्ठाधारी सेम और सदाचार को उमगलाय का सुराद रामक्ष, ऐया ! अष्टा नारी की गुप्य गुम्पस में गया से पुद्धि दर प्रदाभार न हो जाता है परन्तु भदी का निपग किरा मागे राम के रा विरके ही बने हुए होंगे, इसका कारण सिद्ध नही दे कि हमारे देश के बहुत से आता यस के मासा उसे परिणाम में दावाली दाणिसे मिळकुळ । ભાગ હું બહ યt ; વિષય ૬ થી રોલ છે કિમ્બૉ - - क्षा सूग सारा जाइस गम और परमव दान का निमाड़ देते । थे, उन का विगरण संक्षेप मे इस मकार I - भग गम्बर दम गद सा स्मरानों का राजा है, ही हो चुके में भोर हा रहे हैं। भाभी तमाम १२२ १ शुभ पदराव से इसके ब्रान से बहुत काम १- भाभी तुम्ही पदि पान लगा है सभा मनुष्य गो की यजन किया भादिये, दो दि लिये मम सो अवश्य रादिय पर्याति नदि MOSA J महान्यानी काम पर गाय 14 बहु महान भी अनुमि કૃતિ પર અત્ યુ પ્રી માન ન મળ્યું તો બાવળ નો પ્રાન થી પ્રગટ પ્રવિ करें ऐसा कोही सा આ
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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