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________________ २७१ चतुर्थ अध्याय ॥ स्थूल मनुष्य के खाने योग्य खुराक ॥ सब स्थूल मनुष्य प्रायः शक्तिमान् नहीं होते है किन्तु अधिक रुधिर वाला पुष्ट मनुष्य दृढ़ शरीरवाला तथा बलवान् होता है और केवल मेद चरवी तथा मेद वायु से जिन का शरीर फूल जाता है वे मनुष्य अशक्त होते हैं, जो मनुष्य घी दूध मक्खन मलाई मीठा और मिश्री आदि बहुत पुष्टिकारक खुराक सदा खाते है और परिश्रम बिलकुल नही करते हैं अर्थात् गद्दी तकियो के दास बन कर एक जगह बैठे रहते है वे लोग ऐसे वृथा ( शक्तिहीन ) पुष्ट होजाते है । घी और मक्खन आदि पुष्टिकारक पदार्थ जो शरीर की गर्मी कायम रखने और पुष्टि के लिये खाये जाते है वे परिमित ही खाने चाहियें क्योंकि अधिक खाने से वे पदार्थ पचते नही है और शरीर में चरवी इकठ्ठी हो जाती है, शरीर बेडौल हो जाता है, स्नायु आदि चरवी से रुक कर शरीर अशक्त हो जाता है और चर वी के पड़त पर पड़त चढ़ जाता है । स्थूल होकर जो शक्तिमान् हो उस की परीक्षा यह है कि ऐसे पुरुष का शरीर ( रक्त के विशेष होने के कारण ) लाल, दृढ़, कठिन, गॅठा हुआ और स्थितिस्थापक स्नायुओं के टुकडों से युक्त होता है तथा उस पर चरवी का बहुत हलका अस्तर लगा रहता है, किन्तु जो पुरुष स्थूल होकर भी शक्ति हीन होते है उन में ये लक्षण नहीं दीखते है, उन में थोथी चरवी का भाग अधिक बढ़ जाता है जिस से उन को परिश्रम करने में बड़ी कठिनता पड़ती है, वह बढ़ी हुई चरवी तब काम देती है जब कि वह खुराक की तगी अथवा उपवास के द्वारा न्यून हो जाती है, सत्य तो यह है कि शरीर को खूब सूरत और सुडौल रखना चरवी ही का काम है, बढ़ी हुई चरवी से बहुत स्थूलता और श्वास का रोग हो जाता है तथा आखिर कार इस से प्राणान्त तक भी हो जाता है । मीठा और आटे के सत्व वाला पदार्थ भी परिश्रम न करने वाले मनुष्य के शरीर में चरवी के भाग को बढाता है, इस में बड़ी हानि की बात यह है कि अधिक मेद और चरबी वाले पुरुष को रोग के समय दवा भी बहुत ही कम फायदा करती है और करती भी है तो भाग्ययोग से ही करती है । साधारण खुराक के उपयोग और शक्त्यनुसार कसरत के अभ्यास से शरीर की स्थूलता मिट जाती है अर्थात् चरबी का वजन कम हो जाता है । अति स्थूल शरीर वाले मनुष्य को खाने आदि के विषय में जिन २ बातो का खयाल रखना चाहिये उन का सक्षेप से वर्णन करते हैं - -
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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