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________________ चतुर्थ अध्याय ॥ २५१ के भी अत्यन्त हानिकारक है, बहुत से लोग यह कहते है कि - जितना चरपरापन लाल मिर्च में है उतना दूसरी किसी चीज़ में नहीं है इस लिये चरपरी चीज खाने की इच्छा से यह (लाल मिर्च ) खानी ही पडती है इत्यादि, यह उन लोगों का कथन बिलकुल मूल का है, क्योंकि चरपरी चीज के खाने की इच्छावाले लोगो के लिये लाल मिर्च के सिवाय बहुत सी ऐसी चीजें है कि जिन से उन की इच्छा पूर्ण हो सकती है, देखो ! अदरख काली मिर्च, सोंठ और पीपल आदि बहुत से चरपरे पदार्थ है तथा गुणकारक भी है इस लिये जब चरपरे पदार्थ के खाने की इच्छा हो तब इन ( अदरख आदि ) वस्तुओं का सेवन कर लेना चाहिये, यदि विशेष अभ्यास पड जाने के कारण किसी से लाल मिर्च के विना रहा ही न जावे अथवा लाल मिर्च का जिन को बहुत ही शौक पड़ गया हो उन लोगों को चाहिये कि जयपुर जिले की लाल मिर्च के वीजो को निकाल कर रात को एक वा दो मिर्चें जल में भिगो कर प्रातः काल पीसकर तथा घी मे सेक कर थोड़ी सी खा लेवें । यह भी स्मरण रखना चाहिये कि खट्टे रस का तोड़ ( दाउन या उतार ) नमक है और नमक का तोड खट्टा रसे है । बधार देने के लिये जीरा, हींग, राई और मेथी मुख्य वस्तुयें है तथा वायु और कफ की प्रकृतिवालो के लिये ये लाभदायक भी है ॥ अचार और राइता - अचार और राइता पाचनशक्ति को तेज़ करता है परन्तु स्मरण रखना चाहिये कि जो २ पदार्थ पाचनशक्ति को बढाते है और तेज है यदि उन का परिमाण बढ़ जावे तो वे पाचनशक्ति को उलटा विगाड़ देते है, बहुत से लोग अचार, राइता, तेल, राई, नमक और मिर्च आदि तेज पदार्थों से जीभ को तहडून कर देते हैं सो यह ठीक नहीं है, ये चीजें हमेशह कम खानी चाहियें, यदि ये खाई भी जायें तो मिठाई आदि तर माल के साथ खानी चाहियें अर्थात् सदा नही खानी चाहियें क्योकि इन चीजों के सेवन से खून बिगड़ जाता है और खून के बिगड़ने से मन्दाग्नि होकर शरीर में अनेक रोग हो जाते है, इस लिये इन चीजों से सदा बचकर रहना चाहिये, देखो ! मारवाड़ के निवासी और गुजराती आदि लोग इन्ही के कारण प्रायः बीमार होते १-लाल मिर्च के वीजों को खानेसे वीर्य को वडा भारी नुकसान पहुँचता है, इसलिये वीजों को विलकुल नहीं खाना चाहिये ॥ २--खट्टे रस में नींबू अमचुर और कोकम खाने के योग्य हैं, परन्तु यदि प्रकृतिके अनुकूल हों तो खाना चाहिये ॥ ३-अचार और रायता कई प्रकार का वनता है-उस के गुण उस के उत्पादक पदार्थ के समान जानने चाहिये तथा इन में मसालों के होने से उन के तीक्ष्णता आदि गुण तो रहते ही हैं ॥ ४ - विवेकहीन लोग इस बात को नहीं समझते हैं, देखो ! इन्हीं चीजों से तो पाचनशक्ति विगडती है और इन्हीं चीजों का सेवन पाचनशक्ति के सुधार के लिये लोग करते हें ॥
SR No.010863
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShivprasad Amarnath Jain
Publication Year1923
Total Pages788
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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